Friday, May 23, 2008

हिन्दी ब्लॉगर से पंगा??? स्पेमर को सिखाया सही सबक.

लंबे समय से स्पेम कमेंट्स ब्लॉगर्स और टिप्पणीकारों को परेशान करते रहे हैं. आपने भी देखे होंगे, "सी हियर ऑर हियर" जैसे कमेंट्स या ५० डॉलर जैसे नाम मात्र के दाम में एक जोडा मोजे खरीदने का एक्सक्लूसिव मौका, या फिर कुछ इस टाइप, "जी मैं तो आपके ब्लौग लेखन का दीवाना हूँ, आप भी कभी हमारी तरफ़ तशरीफ़ लाइये, ये रहा हमारा पता." अभी कुछ ही दिन पहले जी के अवधिया जी पूरी एक पोस्ट इस मर्ज पर लिख कर अपना दर्द बयां कर चुके हैं.

मगर क्या आपने गौर किया कि पिछले कुछ समय से ऐसे घुसपैठिये कमेंट्स की संख्या में भारी कमी आयी है. पहले अक्सर दिख जाने वाले स्पेम कमेंट्स अब ब्लौग्स से लगभग गायब से हो चुके हैं. वो भी तब जबकि समीर जी, ज्ञान जी और द्विवेदी जी वर्ड वेरीफिकेशन की छन्नी के खिलाफ एक जेहाद सा घोषित कर चुके हैं. हालत तो यहाँ तक है कि कोई भी नया ब्लौगर अपने ब्लौग पर इमेज लगाना बाद में सीखता है, पहले ब्लौग सेटिंग्स में डीफौल्ट से आने वाले वर्ड वेरीफिकेशन के ऑप्शन को ढूंढ कर निकाल बाहर करता है.

अब ये स्थिति तो स्पेमर्स के लिए बहुत अनुकूल होनी चाहिए. फिर क्या कारण है कि स्पेम की संख्या यूँ घटी है. गोया कि कुंजी ताले विहीन खिड़की दरवाजे खुले पड़े हों और चोर हों कि आने का नाम ना लें. मन में आशंका बलवती हुई कि कहीं गूगल देव की तरह इन स्पेमर्स का भी तो हिन्दी ब्लॉग जगत से मोहभंग नहीं हो गया? उन्होंने विज्ञापन देना बंद किए, इन्होने अपनी सौगात बांटना कम किया. सोचा होगा कि क्या फायदा इतनी मेहनत का, कितने पढने वाले और कितने किलिक्याने वाले?

बात की गंभीरता ने हमें बड़ा विचलित किया. तो सोचा कि जरा पता तो लगाएं आख़िर कारण क्या है? कहाँ गए वो लोग? ढूँढ़ते तलाशते इधर उधर होते जा पहुंचे आदरणीय क्रिशन लाल 'क्रिशन' जी के ब्लॉग पर. जी हाँ वही क्रिशन जी. वही वही. तो एक पोस्ट पर कोई 'पेन ड्राइव जी' के स्पेम कमेन्ट के दर्शन हुए.

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अब बेचारा ब्राजील वासी, उसे क्या अंदाजा कि कहाँ पंगा ले रहा है? एक तो हिन्दी के ब्लौगर, ऊपर से कवि. तो जी झपट कर दोनों हाथों से दबोच लिया. हग, हग, वार्म हग. ओ केन्ने सोणे हो जी आप. यहाँ आए, बहुत चंगा लगा जी. जरा ये ताज़ी-ताज़ी अठारह कवितायें तो सुनते जाओ. अरे कहाँ चले?
Krishan lal "krishan" said...

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स्पेमर का तो खून सूख गया. ये कहाँ आ गया भाई. दुनिया भर में स्पेम कमेन्ट किए. कहीं से गाली मिली, कहीं धमकी, अक्सर इग्नोरेंस, कभी कभी क्लिक भी मिल गए. मगर ऐसी मुहब्बत से गले लगाने वाले पहली बार मिले. ये तो अपने से भी बड़े खिलाड़ी लगते हैं. यहाँ से तो कल्टी होने में ही भलाई है.

वो दिन है कि आज का दिन. न सिर्फ़ मिस्टर पेन ड्राइव गायब हुए, बल्कि और सभी स्पेमर्स भी हिन्दी ब्लॉगर्स से खौफ खा गए. पूरा श्रेय आदरणीय कवि महोदय को इस मुसीबत से पीछा छुड़वाने के लिए. है ना जी?

पूरी घटना यहाँ देखें.


'क्रिशन' जी से क्षमा याचना सहित. बस एक छोटी सी ठिठोली है. आशा है गंभीरता से नहीं लेंगे.

14 comments:

Udan Tashtari said...

पूरा श्रेय वाकई किशन जी को ही हम भी दे देते हैं आपके साथ साथ. आपसे तो सहमति जताना हमारा परम धरम रहा है, आज कैसे नहीं. :)

किशन जी के लिये अन्यथा न लेने वाला डिस्क्लेमर पोस्ट वाला ही पढ़ लिया जाये पुनः.

अनूप शुक्ल said...

लफ़ड़ा है।

Arun Arora said...

पंगे लेने से तो डरेगे ही जनाब , उन्हे पता नही है यहा ( हिंदी ब्लोग जगत मे) पंगो का सारा ठेका केवल और केवल हमारे ही पास है :)

Shiv said...

मुझे भी इस बात का विश्वास था कि इस तरह के स्पैम कमेन्ट को कोई कवि-ब्लॉगर ही रोक सकता है. और ब्लॉग पर किशन जी मेरे सबसे प्रिय कवियों में से एक हैं. उन्हें इस कारनामे को अंजाम देने पर बधाई.

Unknown said...

स्पेमर को सबक सिखाने के लिये कृशन जी को और सबक की सूचना देने के लिये घोस्ट बस्टर जी को धन्यवाद!

PD said...

हा हा हा.. क्या घोस्ट बस्टर जी आप भूल गये क्या पुराने दिन?? फिर से कृष्ण लाल जी से मजाक करने लग गये?? वैसे मुझे पता है कि कृष्ण जी अबकी बुरा नहीं माने होंगे.. उस बार तो समझे होंगे कि कोई उनसे मजाक नहीं कर रहा है बल्की उनका मजाक उड़ा रहा है.. :D

वैसे भी पंगेबाज के होते हुये हिंदी चिट्ठाजगत से कौन पंगा ले सकता है..

Gyan Dutt Pandey said...

कविता में बहुत ताकत है। कवितायें क्रांति कर सकती हैं। स्पैमर कौन खेत की मूली है!

ॐ अष्टधातुओ उल्लू के पठ्ठे said...

आज क्रिशन लाल क्रिशन जी की नज्म का एक शेर सुनिये

हादसे हद से बढते जा रहे हैं
हम अपने कद में घटते जा रहे

आप क्रिशनलाल जी क्रिशन का बेहूदा मज़ाक उड़ाकर अपने कद से ही गिर रहे हैं.

कुश said...

ये काम तो कोई कवि ही कर सकता था..

Sanjeet Tripathi said...

हा हा, सही!!

इसीलिए तो " कवियों से पंगा मतलब हर जगह दंगा"!

दिनेशराय द्विवेदी said...

घोस्टबस्टर जी, ये तो बहुत पुराना नुस्खा है कि किसी मजलिस में अगर भीड़ अधिक बढ़ जाए तो किसी कवि को पकड़ो और कविता पढ़वाना शुरू कर दो। भीड़ छंटना शुरू। हाँ, आगे ध्यान न दिया तो बस माईक और टेण्ट वाला ही बचेगा।
ये एक ऐसा मोर्चा है जहाँ केवल कवि ही काम आता है।
और एक बात छब्बीस जनवरी और पन्द्रह अगस्त के म्यूनिसिपैलिटी के कवि सम्मेलनों की भीड़ कोई नहीं छांट सकता। इन कवि सम्मेलनों मे जितने दर्शक आते हैं सब के सब जेब में कविताएं लेकर आते हैं।
अगर कवि ही पीछे लग लेते तो पेन ड्राइव महोदय परमानेंटली पेनिंग के मरीज हो जाते ब्लागर जगत में एक की कमी हो जाती।

L.Goswami said...

sanjeet jee ne sahi kaha "कवियों से पंगा मतलब हर जगह दंगा"!

Rajesh Roshan said...

कवि साहित्यकार सबसे बच के रहने का और वैसे भी हिन्दी में जितनी चिरकुटई हो सकती है उतना और कहा मिलेगा

pallavi trivedi said...

सही है..अब कोई स्पेमर पहले देख लेगा कहीं किसी कवि का ब्लॉग तो नहीं है!

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