मध्य पूर्व के इजराइल-अरब विवाद की थोड़ी सी भी जानकारी रखने वाले के लिए अभय जी के इस विषय पर लिखे ब्लॉग लेखों की स्तरहीनता को समझना कोई मुश्किल काम नहीं है. ये लेख न सिर्फ़ पूरी तरह एकतरफा दृष्टिकोण से लिखे गए हैं बल्कि अपनी बात को सही साबित करने के लिए घटियापने के जितने भी उचित मापदंड हो सकते हैं, उन सभी पर पूरी तरह दुरुस्त बैठते हैं. एक सच्ची कुरूप कम्युनिस्टी कुचेष्टा का बढ़िया उदाहरण.
पहली नजर में ही अभय जी की मंशा हमारी समझ में आ गयी और हमने अपने विचार वहां टिपिया दिए. कम्युनिस्टों के काम करने का अपना एक तयशुदा तरीका होता है. अगर कोई आपकी तरफ़ ऊंगली उठाये तो सबसे पहले उसमें एक मुक्का जड़ दो, फ़िर आगे की सोचो. तो हमारी इस "हरकत" का जवाब अभय जी ने अपने पूरे कम्युनिस्टी अंदाज में दिया, याने सीधे-सीधे 'केरेक्टर असेसिनेशन' पर उतर आए, फ़रमाया: "कहीं आप ये तो नहीं मानते हैं कि हर मुसलमान आतंकवादी होता है? क्योंकि यदि ऐसा है तो इस संवाद का कोई अर्थ नहीं!" कितना मासूम सवाल लगता है, मगर दरअसल ये पाठकों के लिए इशारा है कि विरोधी स्वर किसी खास विचारधारा की पृष्ठभूमि से आ रहे हैं और उनपर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं. वाह, क्या बढ़िया हथकंडा है अभय जी.
लेख श्रँखला के चौथे अंक तक पहुँचते पहुँचते अभय जी का सच्चा उद्देश्य उभर कर सामने आ जाता है. अभी तक आतंकवादियों के विरोध में और आम मुस्लिम के पक्ष में होने का दावा करने वाले ये श्रीमान जी अब खुलकर आतंकवादियों के पैरोकार हो जाते हैं. इस अत्यन्त घृणास्पद पोस्ट पर भी हमने अपनी टिप्पणी छोडी. जवाब में अभय जी ने हमें मुस्लिम विरोधी और सांप्रदायिक वगैरह न जाने क्या क्या कह दिया. और करते भी क्या? उधर आदरणीय अफलातून जी भी मैदान में कूद पड़े घोस्ट बस्टिंग मेंटेलिटी को कोसते हुए. मार्क्सवादियों के साथ ये बड़ी समस्या है कि अपने विचारों से असहमत सभी लोग उन्हें "हाफ पेंटीए" ही नजर आते हैं. लेकिन ये लोग इस बात का जवाब कभी नहीं दे पायेंगे कि आज भी आम जनता की नजर में 'कम्युनिस्ट' शब्द एक गाली से ज्यादा क्यों नहीं है?
मार्क्सवादी सोच किस तरह काम करती है ब्लॉग जगत से ही इसका एक और उदाहरण देखिये. कुछ महीने पहले इरान के राष्ट्रपति अहमदीजेनाद भारत यात्रा पर आए थे. इन जनाब पर अपने देश में अल्पसंख्यकों पर जुल्म करने के अलावा चुनाव में धांधली से जीतने तक के ढेरों गंभीर आरोप हैं. लेकिन एक बात के लिए इनकी बड़ी लोकप्रियता भी है. ये श्रीमान जी कई बार कह चुके हैं कि इजराइल को दुनिया के नक्शे से मिटा दिया जाएगा और सभी यहूदियों को मार दिया जायेगा. प्रेटी-वूमन रक्षंदा के फर्जी नाम से ब्लॉग लिखने वाले सज्जन ने भारतीय मीडिया द्वारा अहमदीजेनाद को ज्यादा अहमियत न दिए जाने को लेकर अपनी नाराजगी भरी पोस्ट लिखी. अपने प्रमोद सिंह जी अजदक वाले (पीर मुग्ध सिंह?) उस पोस्ट पर टिपिया आए थे. जरा देख लीजिये. साथ ही अपने मयखाने से झूमते हुए टिप्पणी कर रहे मयखान्वी "मुनीश" जी के भी शब्द देखिये.
खैर इस विवाद का एक अच्छा परिणाम मेरे लिए ये हुआ कि दिनेशराय द्विवेदी जी की टिप्पणी से दिशा लेकर हमने इस विवाद की जड़ तक पहुँचने का फ़ैसला किया और लग गए इजराइल और अरब इतिहास-भूगोल की पड़ताल में. पिछले बीस दिनों में ढाई-तीन सौ वेब पेजेस को पूरी तरह चाटने और दसियों किताबों को खंगालने के बाद अब निश्चत रूप से जानकारी का स्तर बढ़ा है. लेकिन एक बात और भी ज्यादा स्पष्ट हुई है कि अभय तिवारी जी के लेख निश्चित रूप से घटिया थे. (इन लेखों की विवेचना अगली पोस्ट में)
28 comments:
pata nahin.
rakshanda the pretty woman ke nam se sajjan likhte hain, yah bat nahin pata thi.apne kaeesa pata lagaya.
hafpentiya kitna kyut nam hai. aflatoon fulpentiya hai. baaki sab hafpentiya.
मार्क्सवादियों के साथ ये बड़ी समस्या है कि अपने विचारों से असहमत सभी लोग उन्हें "हाफ पेंटीए" ही नजर आते हैं
एकदम सही बात कही है आपने
मगर इसका उल्टा भी उतना ही सही है
कुछ भी हो, आपका यह प्रयास प्रशंसनीय है। ऐसे ही प्रयासों से सच्चाई सामने आयेगी। प्रामाणिक लेखन से हिन्दी चिट्ठाकारी का स्तर ऊँचा होगा और उसका सम्मान भी।
आशा करता हूँ कि आप 'प्रोपेगैण्डा' को धूल चटाने में सफल होंगे।
ओझैतजी , मैने संघ द्वारा छापी 'संघर्षरत इस्राइल' देखी है । इस्राइल की स्थापना के लिए जैसे विकृत तर्क इंग्लैण्ड -अमेरिका ने दिए थे , वैसे तर्क देने वाले भारत में एक खोजो हजार मिलेंगे। मत खोजो तब भी ओझैत टकरा जाएंगे ।
"पिछले बीस दिनों में ढाई-तीन सौ वेब पेजेस को पूरी तरह चाटने और दसियों किताबों को खंगालने के बाद अब निश्चत रूप से जानकारी का स्तर बढ़ा है"....
बड़ा सुखद है कि इसी बहाने आपने इतना कुछ पढ़ लिया। इसी तरह मरा-मरा कहते हुए वाल्मीकि भी राम-राम तक पहुंच गए थे। भगवान आपका भी उद्धार करें। प्रेत योनि से आप मानव योनि को प्राप्त हों, यही कामना है।
raghuraj mahan ki bat suniye. ghost buster aur ghost me antar nahi pata inko. yoorop tak padh aaye hain ye.
प्रेत-नाशक प्रेत योनी वाला :) ?
शुक्र है, मैं फूल-पेंट पहनता हूँ, वरना... :)
main puri baat pata lar ke tippni karungi..mujhe samay chahiye.
waah! waah!! waah!!!
darpan dikhala hi diya in khokalee maansikata aur vicharon waale mahanubhavon ko.
bahut bahut badhai.
jaari rahen.
हा मै संघी हू पर उन की तरह बदतमीज नही , जो दूसरो के पहनावे पर व्यंग करते है. वरना मै भी उन्हे लाल चड्डी वाला मुल्ला कह सकता था
पिछले बीस दिनों में ढाई-तीन सौ वेब पेजेस को पूरी तरह चाटने और दसियों किताबों को खंगालने के बाद बढी जानकारी का एक शब्द भी इस पोस्ट में नजर आता तो तुलसीदास को राम मिल जाते।
आप कुछ ज्ञानवर्धन करेंगे इस उम्मीद के साथ शुभकामनाएं..
अफलातून जी: आपने अवश्य ये पुस्तक देखी होगी. मैंने अभी तक नहीं देखी, और कोई आवश्यकता भी नहीं समझता. मूल समस्या को जानने के लिए जो आवश्यक था, मैंने नेट पर ढूंढ कर पढ़ लिया है. इतिहास पुनर्लेखन के मार्क्सवादी प्रयासों का विरोध करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ. इसलिए ये सब...
अनिल रघुराज जी: ne kaha: "बड़ा सुखद है कि इसी बहाने आपने इतना कुछ पढ़ लिया। इसी तरह मरा-मरा कहते हुए वाल्मीकि भी राम-राम तक पहुंच गए थे। भगवान आपका भी उद्धार करें।"
मैंने जो कुछ पढ़ा आपने कैसे मान लिया कि वह सब मरा-मरा ही है, स्वयं राम-राम नहीं? या केवल वामपंथी स्त्रोतों से प्राप्त जानकारी ही प्रमाणिक होती है? नेट दुनिया में सब कुछ मिलता है. दोनों पक्षों की ओर से भी और तटस्थ नजरिये से भी. ये तो पढने वाले पर निर्भर है कि वो किस दृष्टिकोण को अपनाता है. आपका मत तो स्पष्ट है.
दिनेशराय जी: आपने पोस्ट के अन्तिम शब्दों पर ध्यान नहीं दिया. मैंने लिखा है कि अगली पोस्ट में सही घटनाओं और अभय जी के वर्जन की समीक्षा करूंगा. ये पोस्ट तो सिर्फ़ एक भूमिका भर है.
अभय जी: धन्यवाद.
(मैंने अनाम कमेन्ट का ऑप्शन फिलहाल के लिए हटा दिया है. अनिल रघुराज जी के प्रति की गयी आपत्तिजनक व्यक्तिगत टिप्पणी को भी मिटा दिया है. कृपया टिप्पणियों के स्तर का ध्यान रखें.)
बहुत खूब! बहुत सही!!
मेरे पास इसी तरह का अनुभव है।
बहुत खूब, लगे रहो घोस्ट भाई, इन लाल मुँह के बन्दरों को अभी तक जवाब सुनने की आदत नहीं थी… दिल्ली विवि के बनावटी प्रोफ़ेसरों को लेकर ये लोग वैचारिक कबड्डी खेलते रहते हैं, यदि "चड्डी" वाले सही प्रयास करें तो इनका लाल मुँह काला हो्ते देर नहीं लगेगी…
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ऎ भाई लोगों, तनि हमको भी इस बौद्धीक बैठक में बहसियाने का मौका दिजीए ..
अ मउका दीए हैं त तनि सूतवा अउर कपसवा देखा न दिजीए, हम भि लट्ठमलट्ठा करें !
अब हमही बुद्धीजिवी सब चिन्ता नहिं करेगा, तो रोटी-भातजिवी का आलू पियाज़ कइसे
सस्तायेगा ? इहाँ सिद्धांत ज़रूरी है, अउर हम बुरबक सीधा लेने ईस मुहार पर रिरिया रहे
हैं । चिन्तियाइये चिन्तियाइये, इतिहसवा में तो अइसे भि हमको जगहे कहाँ देंगे, आप लोग ?
अभय जी के इज़राईल पर लिखे तीनों लेख मैने भी पढे हैं.
उनके राजनैतिक झुकाव को दरकिनार कर के आप ये लेख फ़िर पढिये. मैनें इतने अच्छे तरीके से और बाकायदा समय ले कर की जाने वाली चिट्ठाकारी बहुत ही कम देखी है - किसी भी भाषा में.
वे लेख संतुलित हैं, और आपको यह भी बता दूं की इज़राईल के बारे में मात्र ये ही लेख नहीं हैं जो मैंने पढे हों!
अमरीका में मैंने इजराईलियों की मानसिकता भी देखी है और मेरे घर में पाकिस्तान के चैनल भी आते हैं, देखता हूं मैं उन्हें भी - मेरा नज़रिया मात्र भारतीयों की जानकारी के आधार पर बना हुआ नहीं है.
हम और आप खत्म हो जाएंगे, याहुदियों और मुस्लिमों दोनों की धर्मांधता और शत्रुता खत्म ना होगी - वे आपस में लड मरने के लिये अपने अपने धर्मों और पूर्वजों की सोच द्वारा श्रापित हैं! कुरान में लिखा है की याहुदी तुम्हारे शत्रु हैं - हर गैर मुस्लिम नास्तिक है क्योंकी मात्र "अल्लाह" ही ईश्वर है - वे ईश्वर के लिये कुरान के बाहर के किसी संबोधन को स्वीकार ही नहीं कर सकते! वहीं इज़राईलियों नें जिस संगठित तरीके से अपनी मानवता विरोधी बैंकिंग प्रेक्टिसेस और कुटिलता से लोगों का जीना हराम किया हुआ है आपको वो अभी भारत में बैठे हुए दिखेगा नहीं - वक्त लगेगा! आप किसी एक लेखक को गरिया कर हीरो बन सकते हो लेकिन दोनो में से पक्ष किसका लोगे? हरम में सब नंगे हैं.
एक भारतीय होने के नाते आप इस पर ब्लाग रंग कर बुद्धीजीवी बने रह सकते हैं लेकिन ये व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप मात्र हिंदी पाठकों के रक्तचाप बढाने वाला लेखन है.
चलिए अब आपके लेखों की प्रतीक्षा रहेगी. वैसे अभय जी का सवाल बड़ा प्यारा लगता है मुझे.
"कहीं आप ये तो नहीं मानते हैं कि हर मुसलमान आतंकवादी होता है? क्योंकि यदि ऐसा है तो इस संवाद का कोई अर्थ नहीं!"
ये सवाल अभय जी, लागभग दस-बारह बार पहले भी पूछ चुके हैं. अब देखना ये है कि आपके 'जवाब' बाकी लोगों के जवाब से कितने अलग हैं....:-)
अफलातून जी भी इससे पहले करीब साठ ब्लॉगर को हाफपेंटिया कह चुके हैं. अब देखना ये है कि आप इकसठवें और अन्तिम होते हैं या फिर केवल इकसठवें.
और हम तो आपको घोस्टबस्टर समझते थे. अनिल रघुराज जी तो आपको घोस्ट ही बता गए (प्रेत-योनि वाले)....:-)
हे घोस्ट अब बस्ट कर जा बहुत हुई इंतजार :)
रोचक प्रसंग छिड़ा है। हम आते रहेंगे हाल-चाल जानने। नमस्कार...।
जो मुझे कहना था, कुछ वैसी ही बातें ईस्वामी जी ने बखूबी कह दी हैं। लोग कहते हैं कि हिन्दी ब्लॉगजगत एक परिवार की तरह है। यदि ऐसा है तो व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी वाली पोस्टें न लिखी जाएं तो शायद बेहतर हो। वैसे आप सभी लोग खुद ज्ञानी हैं।
काफी दिन हो गए नेट प्रॉब्लम होने की वजह से मैं इन दिनों ब्लोगिंग से दूर ही रही, इस बीच अनुराग जी का मेल मिला जिस में उन्होंने हैरानी जताई थी किसी सज्जन ने अपने ब्लॉग पर मुझे पुरूष कहा है जो रखशंदा नाम से यानी महिला के रूप में लिखती है...हा हा हा....वाह घोस्ट बास्टर जी, कैसे घोस्ट हैं आप, भाई शैतान में कम से कम इतनी क्वालिटी तो होती है की वो हर बात का पता लगा लेता है, इस मामले में तो ये भूत बड़ा ही फुसफुसा निकला, लगता है आप ने अब तक पुरुषों को महिला का रूप धारते हुए ही देखा है....बेचारे..शायद अब काम्प्लेक्स का शिकार हो कर महिला बन्ने पर उतारू हो गए....
देखिये शैतान जी...मेरा इरादा ब्लॉग जगत में सस्ती शोहरत बटोरने का कभी नही रहा,, मैं यहाँ इसलिए आई भी नही, यहाँ मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने मन की संतुष्टि के लिए आई हूँ...मुझे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता की आप जैसे महान लोग मुझे स्त्री समझे या पुरूष.....
रहा सवाल आपकी जानकारी के भण्डार का जैसे की आपने लिखा है... हमने इस विवाद की जड़ तक पहुँचने का फ़ैसला किया और लग गए इजराइल और अरब इतिहास-भूगोल की पड़ताल में. पिछले बीस दिनों में ढाई-तीन सौ वेब पेजेस को पूरी तरह चाटने और दसियों किताबों को खंगालने के बाद अब निश्चत रूप से जानकारी का स्तर बढ़ा है......तो शैतान जी, हँसी आती है आपकी सोच पर, जानकारी और knowledge शब्द भी आप पर हँसते हुए दिखाई देते हैं.....आपकी जानकारी का स्टैण्डर्ड तो एक लड़की को बिना किसी सबूत के पुरूष कह देने से ही पता चलता है....मुझे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता लेकिन आपकी हिम्मत कैसे हुयी बगैर जाने मेरे ऊपर कमेन्ट करने की....लगता है थोडी चर्चा पाने का बड़ा शौक है आपको....शर्म आती है आप जैसे मानसिकता वाले लोगो पर ....मैं आपकी बड़ी इज्ज़त करती थी...मुझे नही पता था की मुस्लिमों के ख़िलाफ़ नफरतों का ज़हर लेकर आप ब्लोगिंग जगत को ज़हरीला करने आए हैं...आप जैसे लोग ही हैं जो अपने दिलों के ज़हर को फैला कर इस देश पर धब्बा लगाते हैं...लेकिन एक बात यद् रखियेगा शैतान जी, आप जैसे लाखों शैतान मिल कर भी हमारा कुछ बिगाड़ नही सकते....अगर ऐसा होता न तो आज दुनिया में इस्लाम का नाम मिट चुका होता...क्योंकि ऐसे शैतानों की इस दुनिया में कोई कमी नही रही.....लेकिन देखिये न...वो तो मिट गए...इस्लाम आज भी उसी शान से जिंदा है और ता क़यामत जिंदा रहेगा....थैंक्स
भाई अभय आप की एक शोध परक श्रृंखला के उत्तर में आपके पीछे एक भूत महोदय लग गए हैं....भाग लीजिए और अपनी बात जारी रखिए...यहाँ प्रेत जी विनाशक तो दिख रहे हैं लेकिन प्रेतों के नहीं विचार और संवाद के....
आप से इतना ही कहना है कि हर संवाद जिसकी तह में दुर्वाद हो उसमे न पड़े...
और प्रेत जी हो सके तो भूमिका के आगे भी बढ़े....मात्र विरोध के लिए विरोध तो अनुपयोगी है....अकारथ है....
बाबू रख्शंदा मोशाय: बेहतर होगा अगर आप अपनी ये घटिया तक़रीर और अल्फाज, अपने ब्लॉग पर लोगों को मूर्ख बनाने में ही इस्तेमाल करें. और इतनी गुजारिश है मोहतरम कि इस स्वस्थ चर्चा को अपनी जलालत भरी तंग मजहबी सोच से अलग रखें.
बोधिसत्व जी: अभय जी आपके परम मित्र हैं, ये हम सभी जानते हैं.
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