मगर सुकून है कि कम से कम हमारे यहां अभी ऐसे हालात नजर नहीं आते. प्रतिवर्ष अगस्त के महीने में जिस खास आयोजन का पुस्तक प्रेमियों को इंतजार रहता है वह है स्थानीय फ़ूलबाग मैदान पर सजने वाला पुस्तक मेला. पिछ्ले कुछ वर्षों से दैनिक भास्कर ग्रुप के तत्त्वावधान में आयोजित होते आए पुस्तक मेले का इस बार का संयोजन दिल्ली की एक संस्था 'समय इंडिया' ने किया. काफ़ी सारे नामी-गिरामी प्रकाशकों की उपस्थिति से मेले में खासी रौनक रही.
७ से १६ अगस्त तक चले मेले में हमने दो दिन फ़ेरे लगाये और कुछ खरीद-फ़रोख़्त की. पहला दौरा ९ अगस्त को रहा और दूसरा मेले के अंतिम दिन, यानी १६ अगस्त को (१५ को भोपाल से लौटे थे). १६ तारीख़ को दिन भर काफ़ी तेज पानी बरसता रहा, लेकिन पुस्तक प्रेमियों के उत्साह पर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा और वे बड़ी संख्या में मेले में नजर आये. ये देखकर भी अच्छा लगा.
हरेक स्टॉल पर लोगों का खासा हुजूम था. हालांकि अंग्रेजी पुस्तकों की संख्या ज्यादा थी पर हिन्दी की अच्छी किताबें भी
कम नहीं थीं और लोग इन्हें खरीद भी रहे थे. बच्चों की किताबों में टीवी की दखल स्पष्ट रूप से देखी जा सकती थी. बार्बी डॉल से लेकर टॉम एण्ड जैरी तक पुस्तकाकार उपस्थित होकर बच्चों को लुभा रहे थे. चलो इस बहाने ही सही, बच्चे पन्ने तो उलटना सीखें. वरना तो उन्हें ईडियट बॉक्स के कार्टून शोज़ से बाहर आने की फ़ुरसत ही नहीं है.
पुस्तक मेले को ज्यादा आकर्षक बनाने के लिये कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी साथ ही साथ चलते रहते हैं. ९ तारीख़ को बच्चों के लिये लॉफ़्टर चैलेंज का आयोजन था. छोटे-छोटे नौनिहाल, चार से लेकर बारह-चौदह की उम्र तक, स्टेज पर बड़े ही दिलेर अंदाज में उसी प्रकार के चालू-चलताऊ और कुछ हद तक अश्लील जोक्स सुना रहे थे जैसे कि टीवी पर इस प्रकार के फ़ूहड़ शोज़ में नज़र आते हैं. सामने दर्शकों में बैठे उनके माता-पिता अपने कलेजे के टुकड़ों के इन प्रदर्शनों को देखकर बलिहारी जा रहे थे. टेलीविज़न का कितना जबर्दस्त असर है पब्लिक पर. (पिछली ट्रेन यात्रा में एक चीज़ जो बार-बार ध्यान खींच रही थी वो ये कि कई सारे कस्बेनुमा इलाकों की झोंपड़-पट्टी जैसी बस्तियों में तकरीबन हर घर के ऊपर डीटीएच की गोल छतरी नजर आ रही थी.)
काफ़ी देर रात तक भी मेले में लोगों का तांता लगा रहा. ज्यादातर लोग सिर्फ़ तमाशबीन नहीं थे बल्कि कुछ न कुछ खरीद रहे थे. प्रवेश शुल्क की व्यवस्था होने से भी गैर-जरूरी भीड़ की छंटनी हो जाती है. ये अच्छा है. १६ तारीख़ को बच्चों के लिये डांस प्रतियोगिता थी. इसमें भी अच्छी संख्या में बच्चों ने भाग लिया. यहां प्रदर्शित सभी फ़ोटो १६ तारीख़ के ही हैं.
कुछ खरीदी जो इस बार के पुस्तक मेले से की गयी:
1) जैनेन्द्र कुमार द्वारा चुनी हुई २३ हिन्दी कहानियाँ: एक सुप्रसिद्ध रचनाकार द्वारा पसन्द की गयी पिछले सौ वर्षों की प्रतिनिधि हिन्दी कहानियाँ. प्रेमचन्द की कफ़न और गुलेरी जी की 'उसने कहा था' के साथ जयशंकर प्रसाद और वृन्दावनलाल वर्मा की कहानियाँ इसमें शामिल हैं. विशम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक' की 'ताई' तो हर बार आँख नम करती है. सियारामशरण गुप्त की 'काकी' उसी से आगे की कथा लगती है और लगभग वही प्रभाव दिखाती है. इसके अलावा इलाचन्द्र जोशी की 'रेल की रात', यशपाल की 'मक्रील', विष्णु प्रभाकर की 'रहमान का बेटा' और अज्ञेय की 'विपथगा' भी हैं.
२) अमृतलाल नागर का उपन्यास 'सुहाग के नूपुर': नागर जी को मैने आज तक नहीं पढ़ा है. लम्बे समय से इच्छा थी. इससे पहले हिन्द पॉकेट बुक्स में भी यह किताब खरीद चुका हूं पर वह सम्पादित संस्करण था और यह सम्पूर्ण है. अब पढ़ता हूं. आवरण पर गुलाम मोहम्मद शेख की प्रसिद्ध कृति 'बोलती सड़क' का चित्र है जो काफ़ी आकर्षक है और एकदम से ध्यान खींचता है.
३) हरिवंशराय बच्चन की 'मेरी श्रेष्ठ कविताएँ': मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश और निशा निमंत्रण ले चुकने के बाद अब आकुल अंतर और एकान्त संगीत का नम्बर था. लेकिन स्वयं कवि की चुनी हुई कविताएँ देखकर इसी को खरीद लिया. यह भी काफ़ी मोटा माल है. लेकिन बच्च्न की जिस कविता की मुझे जोरों से तलाश है वह इसमें भी नहीं दिखी. नेट पर तलाशने पर केवल एक छ्न्द हाथ आया. देखिये
'अब्बर देवी जब्बर बकरा, तागड़ धिन्ना नागर बेल'
गाँधी की आँधी आई थी बीते लगभग बरस पचास
अपने साथ सपन लाई थी सब कुछ होगा सब के पास
वादों की लादी भर जनता आज रही है कांधें झेल
अब्बर देवी, जब्बर बकरा तागड़ धिन्ना नागर बेल
कुछ और पंक्तियाँ जो मेरे स्मृतिकोष से झांकती हैं:
i) वोट नहीं क्यूं पाया तुमने, तिकड़मबाजी में तुम फ़ेल
ii) घर की रानी पानी भरती, सर पर करती राज रखेल.
कई बरस पहले इंडिया टुडे के साहित्य वार्षिकी अंक में पढ़ी थी. इसे ढूंढने में कोई मित्र मदद कर सकता है क्या?
४) बच्चन की 'नीली चिड़िया': कुछ वर्ष पहले बड़ी बिटिया के लिये हिन्दी के बाल-गीतों की पुस्तिकाएँ ढूंढना चाही थीं तो बड़ी निराशा हाथ लगी थी. अंग्रेजी में तो भरपूर सामान उपलब्ध है पर हिन्दी में स्तरीय सामग्री कम मिल पाती है. इस किताब में कुछ मधुर बाल-गीत हैं जो महाकवि ने अपने एक पौत्र (अभिषेक नहीं) के जन्मदिवस पर उसके लिये रचे थे. क्या बढ़िया भेंट है बच्चे के लिये. एक पढ़िये -
बगुलों ने ऊपर से देखा नीचे फ़ैला छिछला पानी, उस पानी में कई मछलियाँ तिरती-फ़िरती थीं मनमानी । | |
सातों अपने पर फ़ड़काते उस पानी पर उतर पड़े, अपनी लम्बी-लम्बी टाँगों पर सातों हो गए खड़े । | |
खड़े हो गए सातों बगुले पानी बीच लगाकर ध्यान, कौन खड़ा है घात लगाए नहीं मछलियाँ पाईं जान । | |
तिरती-फ़िरती हुई मछलियाँ ज्यों ही पहुंचीं उनके पास, उन सातों ने सात मछलियाँ अपन चोंचों में लीं फ़ाँस । | |
पर फ़ड़काकर ऊपर उठकर उड़े बनाते एक लकीर, सातों बगुले ऐसे जैसे आसमान में छूटा तीर । |
५) फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की प्रतिनिधि कविताएँ: इस बेमिसाल शायर की चुनी हुई नज़्में और गज़लें हैं इसमें. राजकमल प्रकाशन को धन्यवाद देने की इच्छा होती है. उन्होंने कई नामी कवि-लेखकों की रचनाओं के कम दाम संस्करण उपलब्ध करवाये हैं.
कुछ सुनना चाहेंगे? वैसे कोई एक छाँटना काफ़ी कठिन कार्य है.
गो* सबको बहम* सागर-ओ-बादा तो नहीं था हालांकि, उपलब्ध
ये शहर उदास इतना ज्यादा तो नहीं था
गलियों में फ़िरा करते थे दो चार दिवाने
हर शख़्स का सद-चाक-लबादा* तो नहीं था सौ जगह से फ़टा अँगरखा मंजिल को न पहचाने रह-ए-इश्क का राही
नादाँ ही सही, इतना भी सादा तो नहीं था
थक कर यूँ ही पल भर के लिए आँख लगी थी
सोकर ही न उट्ठें ये इरादा तो नहीं था.
६) जे. कृष्णमूर्ति की 'सोच क्या है": लम्बे समय तक ओशो को घोंटते रहने के बाद जब, बकौल गालिब, गमे रोजगार ने गमे इश्क पर विजय पाई, तो वह सब पढ़ाई सबसे पहले पीछे छूटी जो इंसान को बुद्धिजीवी होने के भ्रम में डाले रखती है. लेकिन राख में कहीं शोला दबा पड़ा रहा है, जो मौका मिलते ही भड़क उठने को बेताब हो जाता है. कुछ खिंचाव सा लगा इस लेखक और विषय के प्रति, खरीद ली गयी. अब बांचे जाने की प्रतीक्षा सूची में है.
और भी आठ-दस किताबें खरीदी गईं. पर अभी आपको दूसरे और ब्लॉग भी तो पढ़ने होंगे ना. तो इस पोस्ट से आपको यहीं मुक्त करते हैं. बाकी फ़िर कभी.
19 comments:
बुकसेल्फ समृद्ध हुयी -बधाई ! आपका चयन आपकी रुचियों को प्रर्दशित करता है ! मेले की रिपोर्ट और पुस्तक परिचय के लिए शुक्रिया !
इन्दौर मे भी पुस्तक मेला चल रहा है,देखती हूँ-आज जा पाती हूँ क्या,और अगर गई तो इनमें से कौनसी पुस्तक मुझे मिलती है।
सुन्दर! बच्चन जी की अब्बर-जब्बर कविता की जानकारी के साथ और किताबों के बाद अगली आठ किताबों के बारे में भी जानकारी दीजिये।
जे तो वेरी गुड है भाई । अब्बर-जब्बर से याद आ गया कि बच्चन जी ने लोकगीतों की शैली में कुछ रचनाएं गाई हैं--'जाओ लाओ पिया नदिया से सोनमछरी' और 'फूलमाला ले लो आई मालन बीकानेर से' । इन्हें आकाशवाणी के इलाहाबाद केंद्र में रिकॉर्ड किया गया था । साथ में संगीत भी है । और दिलचस्प बात ये है कि इनकी संगीत-योजना रघुनाथ सेठ ने की थी । जो इलाहाबाद आकाशवाणी में कार्यरत थे उन दिनों । ये रचनाएं विविध भारती से अकसर गूंजती हैं ।
पुस्तक मेले जरूरी हैं। इस बहाने कुछ खरीदी हो जाती हैं। वर्ना बुकसेलर के यहाँ हमेशा पुस्तकें उपलब्ध रहती हैं। हम से खरीदते नहीं बनता दूसरी जरूरतें हमेशा हावी रहती हैं।
वाह क्या सिन्क्रोनिज्म है; कल हम भी लोकभारती में बालकविताओं की पुस्तकें छान रहे थे हिन्दी में!
बहुत सुन्दर ब्लॉग पोस्ट!
पुस्तक मेले भ्रमण के संस्मरण बढ़िया लगे. उम्दा चयन है किताबो का . आभार
अच्छी किताबें चुन लाये आप. अच्छी से मतलब है कि कभी मैं भी खरीदना चाहूँगा ये पुस्तकें.
आजकल हमारे यहां भी चल रहा है भई। अच्छा लगा आपकी रूचि के बारे में जानकर।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वाह वाह पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने वाली इस पोस्ट के लिये बधाई । यह विचार ही बहुत उत्तम है । और पुस्तकों के बारे मे भी लिखे ।'अब्बर देवी जब्बर बकरा, तागड़ धिन्ना नागर बेल' यह कविता मेरे पास पूरी है " हिन्दी की प्रगति शील कविता " संकलन मे यदि आपको चाहिये तो मै भेज दूंगा ।
पुस्तकें मानव की सच्ची मित्र हैं। यह पुस्तक प्रेम बना रहे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
चलिए आपके बहाने हमने भी ग्वालिअर पुस्तक मेला घूम लिया .....उम्दा रिपोर्टिंग
हुजूर, इस शमा को जलाए रखिए। हमको इस दीद से बेहद ही खुशी होती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आपके साथ हमने भी पुस्तक मेले की सैर की. इतने दिनों से कुछ पोस्ट नहीं किया आपने?
अरे वाह आप भी हमारी तरह पुस्तकों के दीवाने निकले...जयपुर में जितने दिन भी मेला लगता था हम सब कुछ छोड़ छाड़ के रोज ही वहां पहुँच जाते थे...मेले का दरबान हमें मेला प्रबंधन अधिकारी समझ सलाम भी ठोकने लग गया था...खैर आपकी रूचि बहुत परिष्कृत है...लाजवाब पुस्तकें खरीदी हैं आपने...
नीरज
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सरजी, 2016 का मेला कब लगेगा, कोई जानकारी है आपको.
2016 का मेला कब लगेगा, कोई जानकारी है आपको.
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