दूरदर्शन के समाचारों में वहां की तत्कालीन गतिविधियों की हल्की सी झलक देखने को मिलती थी. वैसे तो मीडिया सेंसरशिप के चलते पूरी और सच्ची तस्वीर कभी सामने नहीं आ सकी, पर जो कुछ भी थोड़ी बहुत जानकारी छिप छिपाकर चीन से बाहर आ पाती थी वही उसकी नीचता की पराकाष्ठा का भरपूर परिचय देती थी.
अभी भी आंखों के आगे है वो मंजर जो दूरदर्शन के समाचारों में दिखता था. हजारों लेबर एक्टिविस्ट्स, कॉलेज के छात्र छात्राएं और बुद्धिजीवी इकठ्ठा थे. सरों पर सफ़ेद पट्टियाँ बांधे हँसते गाते बच्चे. तालियाँ बजा बजा कर एक दूसरे का उत्साह बढाते. मन में उम्मीद की किरण कि शायद इस बार कुछ कदम उठाने को मजबूर कर ही देंगे भ्रष्टाचार के शिकंजे में जकदी हुई चायनीज कम्युनिस्ट पार्टी को किसी हद तक ही सही लेकिन लोकतंत्र की ओर. धीरे धीरे आन्दोलन फैल गया छोटे छोटे शहरों में. वर्षों से कुचली हुई आजादी की हसरत एक नई अंगडाई लेकर जाग उठी जनता के मन में. पूरी दुनिया साँस रोक कर देख रही थी जो थोडी बहुत जानकारी बाहर आ पाती थी उसे. हम भी देख रहे थे. बड़ा अनूठा दृश्य होता था. जवान उत्साह से भरे बच्चे-बच्चियां. रात-रात भर चौक पर अपनी जायज मांगों के लिए हठ करते. अभी भी आँखों के सामने हैं वो चेहरे.
फिर आई वो काली रात जब कम्युनिस्ट लीडरशिप ने महसूस किया कि बस इससे ज्यादा आज़ादी नही दी जा सकती इन भोले लोगों को. कुछ ही पलों में पचासों टेंक्स दौड़ने लगे बीजिंग कि सड़कों पर. मशीन गन लेकर दौड़ती सेना.
कुछ दृश्य तो अमर हो गए हैं. जैसे कि यह फोटोग्राफ जिसमें इक अनजान बहादुर वीरता से सामना कर रहा है बढ़ती आती चीनी (पढ़ें नीच) टेंक सेना का.
हजारों निहत्थे बच्चों को कुचल दिया गया या तो टेंक्स के नीचे या बिछा दिया गया गोलियों की बौछार से. लाल रंग से धुली हुई उन सड़कों के दृश्य अभी तक जेहन में बसे हुए हैं. इंडिया टुडे का वो अंक जिसमें ये फोटोग्राफ छपे थे लंबे समय तक झुरझुरी पैदा करता रहा.
पूरी घटना इस विकीपीडिया लिंक पर क्लिक करके जानें.
दो दिन बाद लीडरशिप का सेना अधिकारियों के लिए संदेश था:
शाबाश कामरेडों! आपने बहुत बढ़िया काम किया है.
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कुछ दिन पूर्व पुरानी किताबों के बक्सों को खंगालते हुए सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट (हिन्दी में रीडर्स डाइजेस्ट इसी नाम से प्रकाशित होती थी, और इसकी वार्षिक ग्राहकी हमारे यहाँ ली हुई थी) का सितम्बर १९८९ का अंक हाथ में आ गया. थेन आनमन चौक की घटनाओं की पूरे विश्व में हुई भर्त्सना और दुस्साहसी चीन की नीचता की कहानी एक बार फ़िर से आंखों के सामने घूम गयी.
सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट (सितम्बर १९८९) के ये दस पेज एक पीडीऍफ़ फाइल के रूप में डाउन लोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें. (२ MB)
यू ट्यूब पर इस घटना के कई वीडियो मौजूद हैं. एक मर्मस्पर्शी और झकझोर देने वाला वीडियो मैं यहाँ दे रहा हूँ. बेहद शानदार गीत है. अवश्य सुनिए. केवल ऑडियो सुनना चाहें तो वो भी सुन सकते हैं. ऑडियो गीत की डाउन लोड लिंक भी साथ में दे रहा हूँ.
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या केवल ऑडियो गीत सुनें
A song was heard in china in the city of beijing in the spring of 1989 you can hear the people sing and it was the song of freedom that was ringing in the square the world could feel the passion of the people gathered there all children bodies on the square for many nights and many days waiting in the square to build a better nation was the song that echoed there we are china's children we love our native land for brotherhood and freedom we are joining hand-in-hand all children bodies on the square then came the peoples army with trucks and tanks and guns the government was frightened of their daughters and their sons but in square was courage and a vision true and fair the army of the people would not harm the young ones there all children bodies on the square on june of 3rd in china in the spring of 89 an order came from high above and passed on down the line the soldiers opened fire young people bled and died the blood of thousands on the square that lies can never hide all children bodies on the square for four more days of fury the people faced the guns many thousand slaughtered when their grizzly work was done they quickly burnt the bodies to hide their coward shame but blood stick up on their hands and darkness on their names all children bodies on the square there are tears that flow in china for the children that are gone there is fear and there is hiding for the killings still goes on and the iron hand of terror can buy silence for today but the blood that lies upon square cannot be washed away all children bodies on the square. |
ऑडियो गीत: डाउन लोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें (४.९ MB)
सिंगूर, कुन्नूर, नंदीग्राम तो बहुत छोटे स्तर के थेन आनमन हैं. इन्तजार कीजिये दिल्ली में पूर्ण वामपंथी शासन का. सच्चा (चाइना स्टायल) लोकतंत्र तभी देखने को मिलेगा. बांग्लादेशी वोटों के चलते वो दिन दूर नहीं.
22 comments:
मैं सर्वोत्तम के पुराने अंक तलाश रहा हूं। कहाँ मिल सकते हैं?
फोटो बढ़िया है.. काफ़ी मेहनत से लिखी गयी पोस्ट है.. बधाई
कम्युनिस्टों का असली चेहरा ऐसे ही उजागर करते रहिये, बधाई… बढ़िया लिखा है
मुझे याद नहीं आ रहा कि रीडर्स डाइजेस्ट का थियानमेन स्क्वायर वाला लेख मैने अंग्रेजी में पढ़ा या सर्वोत्तम में। पर वह प्रति अब जरूर मेरे पास नहीं है।
यह पीडीएफ में प्रस्तुत करने को बहुत धन्यवाद।
मैं आपकी प्रशंसा अधिक करूंगा तो विद्वत्जन कहेंगे कि आत्मवंचना कर रहा हूं! :-)
ये हुई शानदार पोस्ट. पीडीऍफ़ के लिए धन्यवाद.
यू आर ए .....बस्टर.
घोस्ट बस्टर जी
अब आपके ब्लाग पर आने का मन नहीं करता.
सही लिखा है मित्र
मैं आपकी प्रशंसा अधिक करूंगा तो विद्वत्जन कहेंगे कि आत्मवंचना कर रहा हूं!
सही है-बेहतरीन लिखा!!
कम से कम इस ब्लॉग पर ज्ञान जी वाला डर अभी मुझे नहीं. :)
nice information
haan woh bahut sharmnaak ghatna thi, ise phir se readers digest se nikaal ke ek sahi post ki shakal di... Behtarin
Very well written article - Thank you !
इस रोचक और सत्य के करीब पोस्ट को पढ कर अच्छा लगा।
बड़ा पुराना घाव उधेड़ दिया , धर्म को समाज की अफीम कहने वाले साम्यवादियों के लिए साम्यवाद ही धर्म (अफीम ) हो गया है ,विशेष रूप से भारत में ,जहाँ वास्तविक सिद्धान्ती को (दादा सोमनाथ : माननीय लोक सभा अध्यक्ष ) देश की संविधानिक परम्परा का पालन करने पर पुरा जीवन पार्टी को देने वाले को पार्टी से निकाल दिया जाता है ,जो किसी से उस की जीवन भर की कमाई लूट लेने जैसा ही है |
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और चाइना के शाषकों या कहे सोषकों की याद तजा करा दी आपने ये लाल झंडे वालों का इतिहास ही रक्तरंजित रहा है भारत में बलात बैलट के जरिये सत्ताशीन वामपंथी अपने दादा चीन की राह पर चल कर ही जनभावनाओं को कुचल रहे हैं केन्द्र की मजबूरियों का इन्होने खूब फायदा उठाया है
बहुत बढ़िया....अच्छा लिखा।
Main bhi yar
1985 ka ank
Jis main
Rail yatri kutta
Lampo ki storie hai
Mile to batana
08427259007(punjab)
Main bhi yar
1985 ka ank
Jis main
Rail yatri kutta
Lampo ki storie hai
Mile to batana
08427259007(punjab)
मुझे रीडर्स डाइजेस्ट हिंदी के पुराने अंक कहाँ से मिल सकते है मित्रवर
इस पत्रिका के सभी पुराने हिन्दी संस्करण या जितने हो सके यदि कोई बन्धु मुझे उपलब्ध करा दे या मिलने का स्रोत बता दे तो हम आजीवन आभारी रहेगें I मेरा फोन न० 8601467489
पुराने अंक मिल तो जाएंगे, लेकिन बहुत महंगे हैं।
मुझे सर्वोत्तम का वो अंक चाहिए जिसमें लम्बी कहानी है - "निर्मम हत्या एक मासूम की" ये कहानी है।
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