कॉलेज का द्वितीय या शायद तृतीय वर्ष था. चार - पाँच मित्र एम् ई वान् वल्केन्बर्ग की नेटवर्क एनालसिस बुक की किसी समस्या में उलझे हुए थे. शर्त थी कि कौन पहले सही हल ढूंढ निकालता है. प्रश्न कुछ ज्यादा ही कठिन रहा होगा, इसलिए ब्रेन स्टोर्मिंग सेशन कुछ लंबा खिंचता जा रहा था. अचानक महफिल में कहीं से एक सिगरेट नमूदार हुई और दो - तीन मित्रों के बीच घूमने लगी. मेरे जैसे नॉन स्मोकर्स के लिए इस धुएँ को इतने नजदीक से बर्दाश्त कर पाना कठिन होता है. तो मैंने इशारे में ही सामान्य विरोध दर्ज किया.
ठीक सामने बैठे मित्र ने एक गहरा कश लेते हुए मुझे कुछ देर घूरा, फ़िर चालू हुए, "देख मेरे भाई! जितना जल्दी हो सके इस आदत को अपना ले, वरना बड़ा नुक्सान उठाएग तू."
दूसरे मित्र ने विद्वत्तापूर्वक संशोधन किया, "और अगर इसका आनंद लेना न भी सीखे तो कम से कम औरों को झेलना तो सीख ही ले."
इन लती लोगों से बहस का कोई मूड नहीं था. तो मैंने सर को जल्दी जल्दी हिला कर बात वहीं समाप्त करने की चेष्टा की. "ठीक है यार, कोशिश करता हूँ. मगर अभी समय लगेगा. तब तक के लिए उस दूसरी बेंच पर बैठने जा रहा हूँ."
सिगरेट के महत्त्व से दूसरा परिचय तब हुआ जब पहला पहला जॉब ज्वाइन किया. मेरे डिपार्टमेंट में शायद ही कोई ऐसा सीनियर हो जो ये शौक ना रखता हो. एक दिन उनमें से एक, जो मुझ पर कुछ विशेष स्नेह रखते थे, ने एक दिन प्रेमपूर्वक समझाया, "भाई तुम अगर स्मोक नहीं करते तो कोई बात नहीं. लेकिन जेब में एक पेकेट जरूर रखा करो. जब मौका मिले, पेश कर दो. सबके साथ मिक्सप होने में बड़ी मदद मिलेगी."
कमाल की बात है. इंसान जिस काम को ख़ुद भला नहीं मानता, उसमें दूसरों को शरीक करने का कितना ख्वाहिशमंद रहता है. खैर मुझे ये हुनर ना आना था, ना आया. ये बात अलग है कि मैंने साथियों से परिचय बढ़ाने के दूसरे बेहतर तरीके तलाश लिए.
खैर, वो तो पुरानी बातें हुईं. स्मोकिंग को लेकर सुकून भरी ताजा ख़बर ये है कि सरकार आने वाले २ अक्टूबर से सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध का सख्ती से पालन करवाने को लेकर कमर कस रही है. हालांकि इस बारे में नियम तो कोई ढाई-तीन साल पहले ही बनाया जा चुका था, पर कई लूपहोल्स की वजह से कभी ठीक से लागू नहीं किया जा सका. इस बार संशोधित रूप में इसे ज्यादा प्रभावशाली रूप से लागू किए जाने की योजना है.
नए नियमों के तहत शॉपिंग मॉल्स, सिनेमा हॉल्स, सभी पब्लिक और प्राइवेट कार्यस्थल, होटल्स, डिस्कोथेक्स, केंटीन, कॉफी हाउस, पब्स, बार्स, एरपोर्ट लौंज एवम् रेलवे स्टेशनों पर भी स्मोकिंग पर पाबंदी रहेगी. स्मोकर्स अगर चाहें तो सड़क पर अपनी तलब मिटा सकते हैं, या फ़िर अपने घरों में, लेकिन अन्य सार्वजनिक स्थलों पर नहीं. सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करते पकड़े जाने पर २०० रुपए के जुर्माने का प्रावधान है जिसे आगे १००० रुपए तक बढाया जा सकता है.
पुराने नियम में निजी कार्यस्थलों पर विशेष स्मोकिंग जोन्स की अनुमति थी जहाँ स्मोकर्स देव आनंद साहब की स्टाइल में जिंदगी का साथ निभाने के भ्रम में जिंदगी को धुएँ में उडाने के लिए स्वतंत्र थे. लेकिन इस छूट का ग़लत इस्तेमाल होते देखकर अब सभी निजी कार्यस्थलों पर स्मोकिंग पर रोक लगा दी गयी है. जो कम्पनियां कर्मचरियों को स्मोकिंग की अनुमति देंगी, उनपर प्रति स्मोकर ५००० रुपए का जुर्माना होगा.
जाहिर है सिगरेट कम्पनियों को इसपर आपत्ति होनी है. ITC (इंडियन टोबेको कम्पनी) ने इसके खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायलय में याचिका दायर की है. इसके अलावा इंडियन होटल असोसियेशन ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाया है. लेकिन खुशी की बात है कि इस बार सरकार बैन को लेकर ज्यादा गंभीर नजर आ रही है और इस तरह की तमाम अड़ंगेबाजी की संभावनाओं को भाँपते हुए उसने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर कर बैन को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं की सुनवाई केवल उच्चतम न्यायलय में ही करने की अपील की है.
दूसरी तरफ़ आम जनता की और से सरकार के इस कदम का जबरदस्त स्वागत हुआ है. मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार ९२% लोगों ने धूम्रपान निषेध के लिए कड़े क़दमों का स्वागत किया है
फ़िर भी इस बात को लेकर एक बड़ी बहस छिडी हुई है. बैन के पक्षधर और विरोधी तमाम तरह के तर्क दे देकर मैसेज बॉक्स और फोरम्स के पन्नों पर पन्ने रंगे जा रहे हैं. अपन तो बस इस बैन को जल्द से जल्द और सख्ती से लागू किए जाते देखना चाहते हैं. एक कम्युनिटी के रूप में स्मोकर्स के लिए अपने मन में जरा भी इज्जत नहीं. क्योंकि,
१. ये जानते हैं कि धूम्रपान इनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है. मगर इन्हें परवाह नहीं.
२. इन्हें पता है कि ये इनके घर के अन्य सदस्यों, जो स्मोक नहीं भी करते, के लिए भी बुरा है, मगर ये आदत से मजबूर हैं.
३. स्मोकिंग से होने वाली विषैली गैसों का उत्पादन पूरे विश्व के पर्यावरण के लिए नुक्सान ही पहुँचाने वाला है, होता रहे इनकी बला से.
४. सार्वजनिक स्थानों पर किसी स्मोकर को धुंआ उडाते देखने का दृश्य अभद्रता का खुला प्रदर्शन लगता है.
यहाँ ये जिक्र करना भी सही होगा कि दुनिया के तमाम देशों में पब्लिक स्मोकिंग पर पूर्ण या आंशिक निषेध है. फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के कई राज्य, बेल्जियम के अलावा पिछले वर्ष ब्रिटेन में भी संसद द्वारा क़ानून बनाकर इसकी मनाई कर दी गयी है. वहां भी इस नियम के लागू किए जाने को लेकर तमाम तरह की हाय तौबा मचाई गयी थी, संदेह जाहिर किए गए थे, लेकिन स्मोकिंग पर ये बैन न सिर्फ़ लागू हुआ बल्कि बड़ा इफेक्टिव भी साबित हुआ है.
और अंत में बाची करकरिया का ये कथन मुझे बड़ा सही लगता है, "स्मोकिंग मार्क्सवाद की तरह है. युवावस्था में आपको इसका अनुभव करना चाहिए. लेकिन आप महामूर्ख होंगे अगर समय रहते इससे बाहर नहीं निकल आते."
18 comments:
अपुन तो दूर ही हैं इससे।सही लिखा आपने
घोस्ट भाई, बहुत बहुत बधाई। आपने सिगरेट और उससे होने वाले नुकसानों के बारे में बहुत दिलकश अंदाज में बताया है। यकीन जानिए, ऐसा सिर्फ आप ही कर सकते थे। बधाई।
मुझे एक ही बात का अफ़सोस रहा है । सिगरेटियों के आपसी गणित बड़े सटीक जुड़ते हैं । उनके बीच एक गैर-सिगरेटिया अछूत या बाहरी तत्व माना जाता है । धुंआ सिगरेटियों को बड़ा स्वार्थी बना देता है । इसलिए उन्हें परवाह नहीं रहती कि बगल वाले पर क्या गुज़र रही है । नियम बन जायेगा पर देखना ये है कि इससे किसकी जेबें भरती हैं और किसकी खाली होती हैं ।
और बॉटम लाइन यही कि क्या इसका कोई असर होगा ।
असर होगा ।
होगा ?
सही है कि स्मोकिंग मार्क्सवाद की तरह है। आप उसे बैन कर खत्म नहीं कर सकते; आप उसे सब को बेकार/खतरनाक और निरर्थक साबित कर ही हटा सकते हैं। अन्यथा लोग शान से उस बैन का उल्लंघन करेंगे, जैसे नशाबन्दी और दहेज निषेध का करते हैं।
बहुत बढ़िया आलेख है. पिछले ३ वर्षों से इस आदत से बहुत दूर हो गया हूँ. सरकार का कदम स्वागत योग्य है.
जिन लोगों ने मार्क्सवाद और धुम्रपान दोनों का ही अनुभव नहीं किया। उन का यह विशेषज्ञ विचार वैसा ही है जैसे बन्दर अदरख के बारे में दे।
बहुत उपयोगी और प्रभाव डालने वाली पोस्ट है -सिगरेट और कैंसर के बीच के रिश्ते को ओंकोजीन की खोज से स्थापित किया जा चुका है मगर ताज्जुब है की लोग अब भी पिए जा रहे हैं ! सिगरेट के दुर्व्यसनी प्रायः तब केकडे के द्वारा दबोचे जाते है जब वे ६० साल के ऊपर वैसे ही कमजोर और लाचार हुए रहते है -फेफडों के कैंसर के शिकार भी इसी उम्र से होते हैं -तो सावधान मित्रों इसकी लत मत लगाना और लगी हो तो जल्दी छोड़ देना नहीं तो बुढापा ख़राब होगा -तिलतिल कर मरने को अभिशप्त होना होगा .बहुत होगा तो बीबी बेचारी साथ देगी -बच्चों को फुरसत नहीं रहेगी तुम्हे देखने की !
तो भूत भंजक की सुनो !सिगरेट को ना चुनो !
आपसे सहमत, सिगरेट पीना नुक्सानदायक है, और इसे विवेक से नहीं, कानून से ही रोका जा सकता है।
बहुत अच्छी पोस्ट है. बाची करकरिया जी के कथन की दुम (part 2) पसंद आयी. ठोकर खाकर तो सभी सँभालते हैं. बुद्धिमान तो ठोकर खाने की नौबत ही नहीं आने देते.
बहुत जल्दी इससे तौबा कर लेंगे।
चोर को मत मारो, चोर की मां को मारो ताकि चोर पैदा ही न हों..
ये सिगरेट बीड़ियां बनती क्यों हैं..?
तंबाकू का उत्पादन क्यों..?
यही हाल ससुरी पोलीथीन का है...
सरकार दुकानदारों को पकड़ती है,
पोलीथीन बनाने की इकाइयों को बंद क्यों नहीं करती..?
अत्यंत प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।
आज एक ब्लॉग पर ब्लॉग के बारे में में आपकी टिप्पणी पढ़ रहा था की लोग अपनी बात छुपा कर लिखते है ,बात सही भी है इतने में आपका यह लेख पढने को मिल गया =नैन जिंदगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को ......गाने बाले शीर्षक से लिखी गई रचना बहुत अच्छी लगी
बहुत शानदार पोस्ट...
Hello Geetika,
Thank you very much for your kind words of appreciation. It is just what I feel about smoking and smokers.
The ban on smoking in public/private firms is applicable on all people irrespective of their nationality. Actually last time when the law was framed, there was a provision for special smoking zones within the premises of firms for the smokers, but it was used as a loophole by the smokers and companies. Keeping that in mind this time any such convenience has been denied in the law. No smoking within the office boundaries is permitted.
for more specific details you can look into the act itself. A 13 page pdf file may be downloaded from:
http://rajyasabha.nic.in/bills-ls-rs/2003/XXIX-F-2001.pdf
As you can see for yourself, the act include all persons including the foreign nationals working in India.
Hope it is of some help to you.
By the way I too have experience of working with Korean people and I know very well how much they love to smoke. One more thing is that they only use Korean cigarettes which are quite superior to our desi ones. I remember there were many indian employees in my company who used to wheedle these Y.S.Kims and S.Y.Kims of these rolled poisonous sticks.
regards
अत्यन्त आवश्यक विषय पर बहुत अच्छा लिखा है आपने ! सिगरेट और गुटखे का गन्दा शौक बच्चों तक से जिन्दगी छीन रहा है !
Bahut achcha! Kya baat hai! Ho sakta kuch logon ko sadbudhhi aa jaye
rajeshwari
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