पिछले पाँच दिन में दो बार रेलवे स्टेशन जाना हुआ और ट्रेनों की लेट लतीफी से दोनों ही बार दो घंटे से अधिक वहां खर्च हुए. स्मोकिंग बैन लागू होने के बाद किसी बड़े सार्वजनिक स्थल पर जाने का पहला मौका था तो मैंने ध्यान से परिसर का मुआयना किया और यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि एक भी व्यक्ति सिगरेट के कश लगाता हुआ नहीं दिखा. तो क्या बैन वाकई में प्रभावशाली साबित हो रहा है?
वैसे भारत कोई पहला देश नहीं है जहाँ इस प्रकार का स्मोकिंग बैन अमल में लाया जा रहा हो. फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी समेत यूरोप के कई देशों में सार्वजनिक धूम्रपान पर प्रतिबन्ध है. कुछ इसी प्रकार की रोक संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ राज्यों और दक्षिण अफ्रीका में भी है. आयरलैंड और फ्रांस में तो स्मोकिंग बैन बहुत सफल रहा है. अध्ययन बताते हैं कि जहाँ कहीं भी इस प्रकार की धूम्रपान निषेधक युक्तियाँ लागू की गयी हैं, वहां ह्रदय औरफेफडों से सम्बंधित रोगियों की संख्या में भारी कमी दर्ज की गयी है.
लेकिन हमारे यहाँ इस बैन से परेशान सुट्टा प्रेमी एक ही रट लगाये हैं कि हमारे देश में ऐसे किसी प्रतिबन्ध को ईमानदारी से लागू कर पाना कठिन काम है. तर्क स्वरूप दहेज़ विरोधी कानूनों का हवाला दिया जा रहा है. कहा जा रहा है कि प्रोस्टिट्यूशन और चाइल्ड अब्यूस के खिलाफ क़ानून ने क्या उखाड़ लिया. क्या ये सब बुराइयाँ दूर हो सकीं? कुल मिलाकर भाव ये कि ये नया एंटी स्मोकिंग बैन भी कोई असर नहीं करेगा.
मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ. मेरी समझ में अन्य कानूनों (और उनकी निष्प्रभाविता) की तुलना इस बैन से नहीं की जा सकती. जिन अन्य सामजिक बुराइयों का जिक्र किया जा रहा है वे अत्यन्त गंभीर मसले हैं और दोषी पाए जाने पर उनमें दो से दस वर्ष तक की सजा का प्रावधान है. जाहिर है इन मामलों में ऍफ़ आई आर दर्ज होने से लेकर अन्तिम फ़ैसला आने तक की सम्पूर्ण न्याय प्रक्रिया काफी लम्बी, जटिल और धीमी होती है और ऐसे मौके मिलते हैं जहाँ क़ानून की आँख बचाकर निकल जाने की गुंजाईश बनती हो. दूसरी ओर यह बैन केवल एक चेतावनी स्वरूप जुर्माने का प्रावधान रखता है. अगर कोई निषिद्ध स्थान पर धुआं उड़ाता हुआ धरा गया तो उसे तुंरत अपनी जेब ढीली करनी होगी. इस तरह के उपाय ज्यादा प्रभावकारी हो सकते हैं.
इंग्लेंड के प्रसिद्ध समाचार पत्र 'द इंडीपेंडेंट' ने भारत में स्मोकिंग बैन के सन्दर्भ में अपनी स्टोरी के लिए दक्षिण दिल्ली में कई नौजवानों और नवयुवतियों से बात की. २४ वर्षीय मैनेजमेंट ट्रेनी रुक्मिणी वैश का कहना था कि इस बैन से उनके स्मोक कंसम्पशन पर जरूर असर पडेगा. अभी दिन में आठ सिगरेट सुलगाने वाली रुक्मिणी को आशा है कि यह बैन धूम्रपान के दुष्प्रभावों के संदेश को आम जनता तक ज्यादा बेहतर तरीके से पहुँचाने में सफल होगा. उनकी बहन देवयानी भी इस बैन को एक सही कदम मानती हैं और उम्मीद जताती हैं कि यह उन्हें अपनी स्मोकिंग की आदत, जो अभी दिन में सात-आठ सिगरेट तक सीमित है, को धीरे-धीरे पूरी तरह त्यागने में मददगार साबित होगा.
उत्साह की बात यही है कि इस बैन को आम तौर पर जनता का बहुत जोरदार समर्थन मिला है. समाचार पत्रों में और वेब पर अनेक लेख इसके पक्ष में लिखे जा चुके हैं और अभी भी लगातार सामने आते जा रहे हैं. एस वाय कुरैशी इंडियनएक्सप्रेस में लिखते हैं:
"ये देखते हुए कि रोजाना ५५०० नए भारतीय युवा इस जहरीले शौक को गले लगा रहे हैं, स्वास्थ्य मंत्रालय का यह कदम निश्चित रूप से स्वागत योग्य है. अक्सर इस प्रकार के कदमों का विरोध करने वाले इसे 'मोरल पोलिसिंग' या 'वेल्यु जजमेंट' कहकर लताड़ते हैं. लेकिन देखा जाए तो यह एक बेतुका और बेहूदा तर्क है. यदि इस प्रकार से सोचा जाए तो फ़िर शायद चोर या स्मगलर भी अपने कर्मों को अपना व्यवसाय बताकर उसके खिलाफ उठने वाली आवाज को 'वेल्यु जजमेंट' कहकर खारिज करने के हकदार होने चाहिए. "यह मेरा काम है, किसी को क्या मतलब?" इस किस्म का तर्क दरअसल भ्रामक है. ऐसे तो कहा जा सकता है कि "आत्महत्या भी मेरा काम है, मेरा जीवन, किसी को क्या?" लेकिन आत्महत्या एक आपराधिक कृत्य की श्रेणी में आता है और उसे उकसावा देना भी. असल में तो तम्बाकू उत्पादों के निर्माताओं और प्रचारकों को प्रति वर्ष लगभग दस लाख भारतीयों की मौत का जिम्मेदार माना जाना चाहिए. मुझे तो आश्चर्य है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस कानूनी दृष्टिकोण पर विचार क्यों नहीं किया."
दूसरी ओर बैन के विरोध में उठने वाले कुछ स्वर तर्क से परे जाकर तमाम तरह की थोथी दलीलें पेश कर रहे हैं. इस तरह की बात करने वाले लती सुट्टेबाज अपनी जहर फैलाने की आजादी को (नाहक ही) खतरे में पड़ा जानकर किस तरह के मूर्खतापूर्ण तर्क दे रहे हैं उसका उदहारण देखने के लिए कहीं बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं. कुछ मिसाल यहीं ब्लॉग जगत में मौजूद हैं. इनका साफ़ मानना है कि भारतवर्ष में इस प्रकार के प्रतिबन्ध को लागू करना असंभव है क्योंकि हमारे यहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला है और रिश्वत के बूते पर धुँए के छल्ले ऐसे ही उड़ते रहेंगे.
प्रशांत प्रियदर्शी अपने अनुभव बताते हैं कि ट्रेन में सिगरेट पीते हुए इन्हें टी टी ने पकड़ लिया लेकिन एक सिगरेट की रिश्वत लेकर बिना जुर्माने के छोड़ दिया. डॉ अनुराग आर्य को रेलवे स्टेशन पर सिगरेट की तलब उठ आयी. पुलिस वाले को एक सिगरेट थमाकर ये भी क़ानून तोड़ने में सक्षम हो गए. वाह, कितनी महान बात हुई. क्या ऊंचा दर्जा हासिल किया. लेकिन इन दोनों प्रकरणों में असल में बड़ा दोषी कौन दिखता है? ट्रेन का टी टी बाबू या अपने बिहारी बाबू, द आईटी प्रोफेशनल, जो न सिर्फ़ जानते बूझते चलती ट्रेन में सिगरेट जलाकर कानून तोड़ रहे हैं बल्कि सीना ठोंक कर अपने ब्लॉग पर लिख भी रहे हैं कि कैसे रिश्वत के दम पर बच निकले. गजब का साहस है भाई. साहस ही है ना? रेलवे स्टेशन पर डंडा बजाता गरीब पुलिस वाला बड़ा कसूरवार है या उसे रिश्वत दिखाकर प्रतिबंधित जगह पर बेशर्मी से सिगरेट फूंकते आदरणीय डरमेटोलॉजिस्ट महोदय?
बात किसी व्यक्ति विशेष को पिन पौइंट करने की नहीं है. देखें तो उपरोक्त दोनों उदाहरण उच्च शिक्षित वर्ग से हैं. ये वो समुदाय है जो देश को प्रगति के नए पथ पर ले जाने के लिए जिम्मेदार है. जिसके दम पर हम एक विकसित राष्ट्र बनने का सपना संजोये बैठे हैं. इस वर्ग से आप स्वतः ही आशा कर सकते हैं कि ये लोग न सिर्फ़ क़ानून की उचित जानकारी रखते होंगे बल्कि उसके प्रति सम्मान का भाव भी. लेकिन ठसक के साथ क़ानून को ठेंगा दिखाने का भाव और उससे जुडी सङी हुई झूठी अहंकार भावना भी तो हम भारतीयों की पहचान है. और फ़िर हायपोक्रिसी तो अधिकांश भारतीयों का मध्य नाम है ही. अत्यन्त दुखद और निराशाजनक स्थिति है. कैसे बदलेगी?
20 comments:
सही लिखा है कानून के जानकर ही कानून तोडेंगे तो आम आदमी से क्या उमीद की जा सकती है दरअसल हमारे यहाँ कानून तोड़ना कुछ लोगों के लिए स्टेटस सिम्बल बन गया है |
'मोरल पोलिसिंग' या 'वेल्यु जजमेंट' के नाम पर जो चीख पुकार मच रही है वो निर्माता कम्पनियों की ओर से एम्बेडेड जर्नलिस्ट उठा रहे हैं
लेकिन मैं इस बात से सहमत नहीं कि भारतवर्ष में इस प्रकार के प्रतिबन्ध को लागू करना असंभव है. शुरूआत है, धीरे धीरे सभी को आदत पड़ जायेगी
मुझे तो विश्वास है, आप कम से कम आशा तो कीजिये
सहमत हूँ आपसे घोस्ट भाई लोग शायद न माने पर अगर सिगरेट के पीछे स्मार्ट दिखने की लोगों की मानशिकता न होती तो इसके आधे से ज्यादा लती कम हो जातें ..क्योंकि शुरुवात वहीँ से होती है,और यह विषय कानून से ज्यादा इस बात पर निर्भर है की लोग इसे सही मानते हैं या ग़लत.
सिगरेट मर्द पीता है, बुद्धिजीवि पीता है, बड़ा आदमी पीता है...इसी सोच के चक्कर में बेवकुफ पीता है.
प्रतिबन्ध स्वीकार्य हो सकता है. कोई असम्भव नहीं.
बेंगाणी जी की उक्ति - वाह!
और मेरे विचार भी आप से हैं।
संजय बेंगाणी और पांडे जी से शत-प्रतिशत सहमत हूं।दशहरे की बधाई आपको।
वेबस्टर डिक्शनरी के प्रथम संस्करण में सिगरेट की परिभाषा:
तम्बाकू से भरी एक नली जिसके एक सिरे पर धुंआ होता है तो दूसरे सिरे पर एक बेवकूफ
हम तो आपको शाबासी देने आए थे कि आपने आज तीन क़ानून तोडे, पर कई बार पढ़ने पर भी कुछ पता ही नहीं चला कि आपने कौन से क़ानून तोडे. आप तो सिगरेट में ही उलझ गए. चुनाव का मौसम आ रहा है, तुंरत कुछ कानून तोड़ डालिए, चुनाब समितियां जल्दी ही उम्मीदवारों की तलाश में निकलेंगी. कम्पटीशन सख्त है, हो सकता है एक दो कत्ल भी करने पड़ें.
चाहे जो भी यह एक बहुत अच्छा और देश के हित में लिया कदम है !
bahut sunder lekh
keep writing
happy ravan dahan
regards
वाह वाह ! क्या कहने .
बढ़िया! लेकिन केवल तीन कानून तोड़ने से क्या होगा जी!
कानून को चलाना केवल बनने वाले और उसे लागू करने वाले का उत्तरदायित्व नहीं है. उत्तरदायित्व उनका भी है जिन्हें इसका पालन करना है. मुझे लगता है कि दोनों तरफ़ के लोगों की पहल ज़रूर होगी और कुछ हद तक अंकुश ज़रूर लगेगा.
आपकी चिन्ता जायज है, शायद ये कानून चल निकलेगा, उम्मीद तो करनी ही चाहिए। पर आपने कौन से तीन कानून तोड़े स्पष्ट नहीं हो पाया, पर इस लेख के लिए शाबाशी।
आपके धुवाधार लेख से मुझे आप पर हंसी आ गई.. मैंने अपने चिट्ठे पर जिस समय की चर्चा की थी उस समय मैं विद्यार्थी जीवन में था.. उस समय किसकी सोच कैसी होती है ये आपको बताने कि जरूरत नहीं है.. मेरा अनुमान है कि आप पढे लिखे हैं और कभी विद्यार्थी भी रहे होंगे.. अपने उस पोस्ट में मैंने अपने दो अनुभव बांटे हैं.. पहले अनुभव में मैं कानून तोड़ता पाया गया(विद्यार्थी जीवन में) तो दूसरे अनुभव में कानून को जबरी पालन कराता भी पाया गया(अपने जिम्मेवार नागरिक जीवन में).. मगर आपको क्या.. आपको तो धुवांधार लेख से हिट्स और कमेंट बढाने से मतलब सा मुझे दिख रहा है..
बधाई.. हिट्स के लिये भी और इतने सारे कमेंट्स के लिये भी..
प्रशांत जी, ये एक सामान्य फिनोमिना है कि जब व्यक्ति के पास तर्क का अभाव होने लगता है तो वो कुछ इसी तरह की बात करने लगता है जैसा कि आप कह रहे हैं. जब और कोई जवाब ना सूझे तो सामने वाले को हिट्स प्रेमी और गैर जिम्मेदार बताकर असली मुद्दे से बात का रुख पलट दिया जाए. अब कुछ तो कहना ही है ना आपको, तो चलिए मैं इस बात का बुरा नहीं मानता.
जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट में ही स्पष्ट लिखा था, मैं किसी व्यक्ति विशेष को निंदा का केन्द्र बनाने के लिए ऐसा कुछ नहीं लिख रहा हूँ, बल्कि मेरा प्रहार भारतीय समाज की उस मानसिकता पर है जो एक अच्छी पहल का विरोध करने के बहाने ही ढूंढती है. कथनी और करनी में भारी अन्तर रखने वाले जनमानस के प्रति अपनी निराशा को ही व्यक्त किया था मैंने. आप इसे अपने खिलाफ क्यों समझ रहे हैं? असल में हिन्दी ब्लॉग जगत में आडंबरपूर्ण औपचारिकता का ही बोलबाला है, जो मुझे तो ज्यादा नहीं जमती. मैं बात को स्पष्ट कहने में यकीन रखता हूँ बिना पीआर की चिंता किए.
अब बात की जाए आपकी सफाई की. आपने विद्यार्थी जीवन और जिम्मेदार नागरिक जीवन के बीच एक लकीर खींचने की कोशिश की है. क्या एक विद्यार्थी एक जिम्मेदार नागरिक नहीं हो सकता? क्या उसे क़ानून का ज्ञान नहीं हो सकता? खास तौर पर आपके जैसे सूचना तकनीकी के छात्र को. आप ट्रेन में सिगरेट पी रहे थे और ऐसा लगता है कि अकेले सफर कर रहे थे, तो मान लिया जाए कि आप कम से कम स्कूल में तो नहीं रहे होंगे. कॉलेज में रहे होंगे तो २० वर्ष से कम क्या उम्र रही होगी. सिगरेट पीना आपने कितनी भी कम उम्र में शुरू किया हो पर क़ानून की जानकारी के लिए २० वर्ष की अवस्था कोई कम नहीं होती.
लेकिन फ़िर वही बात कि आपने तब क्या किया, क्या क़ानून तोडा, उसका ज्यादा महत्त्व नहीं, आप बालिग़ हैं, जो चाहें सो कर सकते हैं. मेरी परेशानी इस बात से है कि अब इस घटना का अपनी पोस्ट में शान से जिक्र करके आप कौन सी महानता का परिचय दे रहे हैं? केवल नकारात्मक मानसिकता ही तो दर्शा रहे हैं.
आपकी पास कहने को कुछ ज्यादा नहीं है, ये इससे भी पता चलता है कि अन्य लोगों का जिक्र करके आपको अपनी पोस्ट की लम्बाई पूरी करनी पड़ रही हैं. मैं भी सभी को नहीं पढता, नहीं पढ़ पाता. कौन किसे पढ़ना पसंद करता है और किसे नहीं ये व्यक्तिगत रूचि का मामला है. आप अपनी पसंद बनाने के लिए स्वतंत्र हैं, बाकी सभी की तरह.
और हिट्स और कमेंट्स को लेकर एक बिना मांगे राय दूँगा. इस भ्रम में मत रहिएगा कि आलोचनात्मक लिखने पर ज्यादा हिट्स और कमेंट्स मिलेंगे. ब्लॉग जगत में ज्यादातर लोग मीठा और प्रिय ही सुनना पसंद करते हैं. ज्यादा कमेंट्स चाहिए तो किसी की तारीफों के पुल बांधिए, अगर दो टूक लिखेंगे तो ज्यादातर लोग तो आपको ओवरलुक ही करेंगे जब तक कि आपकी बात में दम ना हो.
खैर ये सब दरकिनार कर बता दूँ कि मैं अक्सर आपको पढता हूँ, और आगे भी पढता रहूँगा.
मोहल्ला को लाल मिर्च लग गई. उन्होंने आपके ब्लाग को राष्ट्र तोड़क करार दिया है. मोहल्ला अब हिंदू विरोधी मंच बन गया है, इस लिए इस नामकरण पर आपको वधाई.
सामयिक चिंतन के साथ समाधान तलाशता रुचिपूर्ण लेख बढ़िया लगा बधाई स्वीकारें
मुझे इस कानून का व्यवहारिक अर्थ केवल इतना ही दिखाई देता है की पहले आपके पास कोई अधिकार नही था अपने बगल में खड़े व्यक्ति को धूम्रपान करने से रोकने का, लेकिन अब आप उसे अधिकार पूर्वक मना कर सकते हैं. बाकि ऐसा तो वाकई में सम्भव नही दिखता की धुम्रपान एकदम ही बंद हो सकेगा सार्वजनिक जगहों पर.
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