Thursday, September 10, 2009

लगता है अब हमें भी टिप्पणी मॉडरेशन चालू कर ही लेना चाहिये

इससे पहले कि पूरी बात का खुलासा हो, "अपने" चंद अश़आर पेश करने की अनुमति चाहूंगा.

चुपके चुपके से रात और दिन टसुओं का बहाना याद हैगा
हमको तो अभी तक आशिकी का वो जमाना याद हैगा.

हमें पता है कि आपका दिल वाह-वाह करने को मचल उठा होगा. पर दाद देने की जल्दी मत कीजिये. आगे और भी हैं. सुनिये.

कभी किताबों में फ़ूल रखना, कभी दरख़्तों पे नाम लिखना
हमें भी है याद आज तक वो नजर से हर्फ़*-ए-सलाम लिखना       शब्द/अक्षर/Letter/Alphabet

वह चाँद चेहरे वह बहकी बातें, सुलगते दिन थे महकती रातें
वह छोटे छोटे से कागज़ों पर मुहब्बतों के पयाम* लिखना             संदेश/Message

गुलाब चेहरों से दिल लगाना, वह चुपके चुपके नज़र मिलाना
वह आरज़ूओं के ख़्वाब बुनना, वह क़िस्सा-ए-ना-तमाम* लिखना   Never Ending Story

मेरे नगर की हसीँ फ़िज़ाओं, कहीं जो उन का निशान पाओ
तो पूछना के कहाँ बसे वह, कहाँ है उनका क़याम* लिखना               ठिकाना/Location

गयी रुतों मे 'हसन' हमारा, बस एक ही तो यह मशगला* था             कारोबार/Occupation
किसी के चेहरे को सुबह कहना, किसी की ज़ुल्फ़ों को शाम लिखना

हां, अब कीजिये इन कलम तोड़ रचनाओं की तारीफ़. हम शुक्रिया कहकर दाद बटोरने में कभी नहीं थकने वाले. आखिर रोज-रोज तो नहीं कहे जाते ऐसे उम्दा शेर. पता नहीं अगली बार कब मूड बने अपना. तो कंजूसी छोड़िये और तारीफ़ उछालिये.

लेकिन अगर कहीं गलती से ये शेर कहीं और पढ़े सुने लगें तो फ़िर चुपचाप शराफ़त से आगे का रास्ता देख लें. तब किसी कमेन्ट की जरूरत नहीं. अगर करेंगे भी तो मॉडरेट कर दिया जाएगा. जब तक गुरुदेव का आशीर्वाद हमारे साथ है, हमें किसी का डर नहीं.

अब एक गज़ल सुनिये. चित्रा सिंह की आवाज में है गुरुदेव की ये गज़ल.



स्वर: चित्रा सिंह
शायर: तारिक बदायूंनी

इक ना इक शम्मा अन्धेरे में जलाये रखिये,
सुब्हा होने को है माहौल बनाये रखिये
जिन के हाथों से हमें ज़ख़्म-ए-निहाँ पहुँचे हैं,
वो भी कहते हैं के ज़ख़्मों को छुपाये रखिये
कौन जाने के वो किस राह-गुज़र से गुज़रे,
हर गुज़र-गाह को फूलों से सजाये रखिये
दामन-ए-यार की ज़ीनत ना बने हर आँसू,
अपनी पलकों के लिये कुछ तो बचाये रखिये

अठारह महीनों के ब्लॉगर जीवन में कल तीसरी बार ऐसा हुआ कि एक ब्लॉग पर हमारी टिप्पणी मॉडरेट करके साफ़ कर दी गयी. ऐसा कुछ गलत नहीं था टिप्पणी में. ये रही जस-की-तस:

???
इनमें से अधिकांश शेर जगजीत सिंह या चित्रा सिंह की आवाज में सुने हैं. मूल लेखकों का नाम पोस्ट में साथ दिये जाने की अपेक्षा की जाती है.

हमारी टिप्पणी साफ़ हुई और वाहवाहियां बरसती रहीं. जय हो मॉडरेशन की. बड़ा काम का हथियार है भाई. इसे तो अब लगा ही लेना चाहिये सभी को. वैसे मुफ़्त में एक सीख मिली. जिस किसी पोस्ट पर उड़न-तश्तरी जी की टिप्पणी ना हो, उसे थोड़े संदेह की दृष्टि से ही पढ़ा जाना चाहिये.

एक और हो जाए? जय गुरुदेव. सुनिये.



स्वर: जगजीत सिंह
शायर: निदा फ़ाज़ली

अब खुशी है ना कोई दर्द रूलाने वाला,
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला
उसको रूख़्सत तो किया था मुझे मालूम ना था,
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
एक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया,
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला
एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा,
जिस तरफ देखिये आने को है आने वाला

----------------------------------------------

ये दूसरी वाली गज़ल बहुत गमज़दा  स्वर की है. ये "होप" एल्बम से है जो जगजीत और चित्रा के युवा और इकलौते बेटे विवेक की एक कार दुर्घटना में दुखद मौत के कुछ ही समय बाद जारी किया गया था. ये एल्बम इस मायने में भी ऐतिहासिक है कि इसके बाद चित्रा सिंह ने गज़ल गायन से मुंह मोड़ लिया. पिछले बीस वर्षों में उनके सिर्फ़ भज़नों के इक्का-दुक्का एल्बम ही आये हैं.

25 comments:

अजित वडनेरकर said...

पूरी पोस्ट ही नायाब है। कई मायनों में कारूणिक भी। सत्यान्वेषण भी हुआ है इसमें। कोट नहीं करेंगे। जगजीत साहब के लिए गुरुदेव शब्द मनभाया। इधर भी यही हाल है।

जै जै

अनूप शुक्ल said...

बड़े धांसू शेर हैं भाई। ब्लाग भी बहुत क्यूट टाइप लग रिया है। बधाई दे रहे हैं सो ग्रहण कीजिये। बकिया सब तो आप माडरेट कर देंगे इसलिये क्या कहें?

Anonymous said...

आपके "गुरुदेव" (या गुरुघंटाल) पहले भी एसा करते रहे हैं.

Yunus Khan said...

अरे अरे जय गुरूदेव । जय टिप्‍पणी वर्षा । जय ब्‍लॉगिंग । जय डकैती ।

Arvind Mishra said...

टिप्पणी माडरेशन का नया औचित्य (?) उजागर हुआ !

Udan Tashtari said...

जय गुरुदेव कहो..और जारी रहो ...भले ही हैगा जबलपुरिया शब्द हो हमारी गज़ल से.

दिनेशराय द्विवेदी said...

गुरूओं की कमी नहीं संसार में
एक तलाशो हजार मिलेंगे

विवेक रस्तोगी said...

जे तो भैया हम भी बोत देख चुके हैं सही नबज पकड़े हैं आप।

कुश said...

हा हा.. ये भी खूब रही.. गूंगा गाये और बहरा ताली बजाये वाली बात है जी..

naresh singh said...

आपके द्वारा की गयी मोडरेशन की महीमा सही जान पडती है । जगजीत सिह की गजलो के दिवाने तो हम भी पुराने समय से है लेकिन गजल की सम्झ कम है मुझे तो उनका दिया हुआ संगीत बहुत अच्छा लगता है ।

L.Goswami said...

क्या भूत भाई आप भी मोडेरेसन को लेकर रोने-गाने लगे ..हमारी कई टिप्पणियाँ कई जगह मोडरेट हो गई है ..पोस्ट लिखने जाएँ तब २० पोस्टों का जुगाड़ हो ही जाये ..बहरहाल आज का दिन आपने बना दिया ..शुक्रिया

सदा said...

बिल्‍कुल सही कहा आपने ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

:) हा हा हा.....

Abhishek Ojha said...

ओ हो ! तो ये बात है. मोडरेशन इसीलिए तो बना है. कोई और उपयोग हो तो बताएं? :)

Gyan Dutt Pandey said...

मॉडरेशन हम भी लगाये हैं। आपकी पोस्टें कबाड़ लें क्या?
यूंही पूछा। करना हो तो क्या कर लेंगे आप? :)

प्रवीण said...

.
.
.
सत्य कहा मित्र,
मैंने आज इसी कारण से मॉडरेशन की इस प्रवृत्ति पर कुछ सवाल उठाये हैं।

समय मिले तो देखिये:-
सुनिये मेरी भी...
प्रवीण शाह

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

टिपणी माडरेशन लगने से पहले ही टिपिया लें... क्या पता बाद में यह माडरेशन की ज़द में आ जाए:)

Anil Pusadkar said...

हम तो आपकी तारीफ़ ही कर रहे है इसे माडरेशन की चक्की मे पीस मत देना।

वाणी गीत said...

कभी कभी माउस की गलती से भी हो जाता है ऐसा
बहरहाल ...जय हो मोडरेशन देव ..!!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अंत्तोगत्वा सभी को एक न एक दिन यह निर्णय लेना ही पडता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Vinay said...

यूँ भी कभी कभी हो जाता है

शरद कोकास said...

सही है " शेर चोरों " के लिये यह सही सबक है ।

नीरज गोस्वामी said...

स्लो मोशन टाइप के इंसान हैं भाई जो इतने दिनों बाद (दिनों बाद....नहीं...महीनों बाद ) इस पोस्ट को पढने चले आये...लेकिन जब जागो तभी सवेरा है...ग़ज़ल हज़ल और गुरुदेव तीनो बेमिसाल...
नीरज

संजीव द्विवेदी said...

वाह,वाह । मौलिक शेर .पहले कभी सुना या पढ़ा नहीं ।

Rohit Singh said...

वाह वाह वाह वाह क्या शेर लिखे हैं आपने। मान गए मुबारक हो...

LinkWithin