Wednesday, May 28, 2008

एक पोस्ट में इतनी गालियाँ देखकर तो भडासी भी शर्मा जायेंगे फिर भी हम लिख रहे हैं तो इसके पीछे आख़िर कौन सी मजबूरी है?

सबसे पहले तो रचना जी का हार्दिक धन्यवाद जिनसे हमें ऐसा लंबा शीर्षक रचने की प्रेरणा मिली. ये भी बस एक प्रयोग भर ही है. परिणाम अगर संतोषजनक रहे तो आगे से कम से कम आधी पोस्ट शीर्षक में ही लिख देने पर भी विचार करेंगे. लोगों को सुविधा हो जायेगी. एग्रीगेटर पर ही पढ़ लो. अगर टिपियाने का मूड हो तो ही ब्लॉग पर जाओ.

अगला आभार उन सभी ब्लॉगर बंधुओं का जिनके शीर्षक और शीर्षक पर हिट्स की संख्या देखकर हमें भान हुआ कि भडास और गाली शब्द कितने हिट्स खेंचू हो सकते हैं. परिणामस्वरूप यह महान शीर्षक अस्तित्व में आया. लोग यही सब तो पढ़ना चाहते हैं. दो सौ ढाई सौ तक हिट्स मिल रहे हैं ब्लौग्वाणी पर.

हिन्दी ब्लॉग जगत तेजी से पाँव पसार रहा है. नित नए लोग जुड़ रहे हैं. कई ऐसे भी जुड़ना चाह रहे हैं जिनके मन में लिखने के लिए भाव तो बहुत हैं पर शब्दों में ढालने में मार खा जाते हैं. तो अग्रजों को देख पढ़कर ही तो सीखेंगे. कुछ योगदान हम भी दे देते हैं इस शिक्षा में बड़े लोगों के साथ साथ.

तो जी लीजिये पेश है 'नानाजी' की कलम से निकली ये गाली पुराण. नहीं नहीं हमारे नानाजी नहीं, ये तो कविवर का तखल्लुस है. इसी नाम से पहचाने जाते थे. आशा है नवागन्तुकों के लिए काम की चीज साबित होगी. पढो प्यारों, भविष्य में ऐसी ही भाषा में लिखे जायेंगे हिन्दी के ब्लॉग्स.
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गाली-पुराण
(१०८ से भी दो चार दाने अधिक)

प्रथम सुमरि खल-दलसकल, गाली के आधार।
फिर वरणों गाली चरित, जो दायक फल चार॥
सुख-मोचन, उर-भय-भरन करन घात-प्रतिघात।
यह गाली महिमा अमित जग में है विख्यात॥
पढ़हि सुनहिं अति प्रेम से, जो यह गाली पुराण।
तिनके सकल मनोरथ, सिद्ध करहिं भगवान्॥

"अथ गाली-पुराण"

दोहा
नालायक, उल्लू, सूअर, बेवकूफ - बदमाश।
पाजी - गदहा - आलसी - घरवाली का दास॥

चौपाई
कुत्ता - डेढ़ - गंवार@ - हरामी। नीच - नारकी - नरपशु - कामी॥
मुआ - मूढ़ - मुँहफट - मुँहकाला। चोर - भूतिया# - ससुरा - साला॥
चुगला - घूसखोर - घरफोरा। चापलूस - चंडाल - चटोरा॥
मूर्ख - बेशरम - घोंचू - पोंगा। बुध्धू - बैल - विलासी - चोंगा॥
बत्तड़ - बेहूदा - वाचाली। जड़ - जान्गड़ - जाहिल - जन्जाली॥
लम्पट - लुच्चा - लट्ठ - लवाडी। लबरा - लतियल - लोभी - भांडी॥
क्रूर - कठोर - कुटिल - कुविचारी। अधम - अभद्र - निशाचर - रांडी॥
कामचोर - कमबख्त - कमीना। कंगला - कपटी - कृपण - कुदीना॥

दोहा
भांड - भूत - भोंदूबकस - मनघुन्ना - मनहूस।
मरियल - मगरूरा - मिटा - भकुआ - मक्खी चूस॥

चौपाई
डेम - फूल - शू-मेकर - ब्लाडी। होर - स्टुपिड - फाल्स - अनाड़ी॥
केयरलैस - अनलकी - मंकी। स्वाइन, होपलैस, किड - डंकी॥
नॉनसेंस, डाउटफुल - नाटी। रोवर - थीफ - फुलिश - री ब्राटी॥

दोहा
रंडुआ - भंदुआ - लालची - लंगर - बेईमान।
दुष्कर्मी - ऐबी - लचर - दम्भी - दुष्ट - अजान॥

- "नानाजी"
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@ असली रचना में प्रयुक्त शब्द असंसदीय और उसका व्यवहार में प्रयोग आपराधिक घोषित हो गया है। तुकात्मक शब्द से बदलना पड़ा।
# यहाँ भी मूल पाठ में परिवर्तन करना पड़ा क्योंकि असली शब्द हमसे टाइप नहीं होने का.

अगर कोई सज्जन असली गालियों की ख्वाहिश में यहाँ तक गए हैं तो उन्हें हुई निराशा के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं.

28 comments:

Dr. Praveen Kumar Sharma said...

Ati Uttam!!!

Gyan Dutt Pandey said...

बड़ी वेजिटेरियन गालियां हैं। लो केलोरी, हाई फाइबर डाइट। सुधी जनों का पेट ही न भरे! :)

Rajesh Roshan said...

मैं केवल हँस सकता हू :)

Udan Tashtari said...

गालियों में यह बदलाव आपकी सज्जनता का प्रतीक है. वरना तो नानाजी को हम जानते हैं कि वो क्या कहते हैं ओरिजनली.

बहुत आभार इस बदलाव के लिए-आप समझते हैं कि किसी बात को कैसे रखना है सभ्य समाज में उसी सो काल्ड दमदारी से बिना उस तरह हुए. :)

Arun Arora said...

आपने तो मेहनत की और सज्जनो के देने के लिये गालिया लिख दी. आपका धन्यावाद अब आज से हम आपके ब्लोग का उपयोग इसी सिलसिले मे किया करेगे, जब भी किसी को गालिया देनी हुई उसे आपके ब्लोग कालिंक देकर बता दिया करेगे खि आपके लिये हमारी हार्दिक भावनाये यहा लिखी है :)

dpkraj said...

दिलचस्प् आलेख!
दीपक भारतदीप

Yunus Khan said...

बहुत बढिया है प्रे‍तविनाशक

Sanjeet Tripathi said...

हजूर, आपके असंसदीय शब्दों से परहेज के कारण तो हमें फिलहाल "साधु-साधु" लिखना ही पड़ेगा ;)

Anonymous said...

bhoot bhai hamey dhanyavaad daene kae liyae aabahr
bahut khoja "naari " ka link aap ke blog roll mae nahin mila , afsos
!!!!
pehle to aap ke darshan naari blog kii kament kidki pae ho tey they aaj kal kehaa vyasth haen ??
puneh dhanyvaad aur aashish kae sath kii aap ka yae galiyon ka chlisa badhey aur vistaar paaye !!!!

Pratyaksha said...

भूत प्रेत को गालियों की क्या ज़रूरत । प्रेतपना (?) ही काफी डराने के लिये :)
इन सब को तो इंसानों के लिये छोड़ दीजिये ..

Unknown said...

अलंकारों से सुसज्जित काव्य में गालियों का सुन्दर प्रयोग पहली बार देखने को मिला। धन्यवाद!

अभय तिवारी said...

बड़े शालीन हैं आप..(हो सकता है आगे चलकर ये भी गाली हो जाय जैसे बुद्धू और भद्दा हो गई..)

Kirtish Bhatt said...

हा हां हा :D जिन ब्लोगरों का काम बिना गालियों के नही चलता वे इन सात्विक गलियों का प्रयोग करें.

PD said...

निराश हुआ जी.. यहां तो एक भी मनपसंद गाली नहीं है.. :)

Shiv said...

वाह! बहुत बढ़िया कलेक्शन है...आगे का अध्याय एक-दो दिन में छापेंगे या फिर.......)
दो दिन देर से छापे हैं. (साहित्यिक लाइन है...अनुप्राश अलंकार..लेकिन एक ब्लॉगर लिख रहा है...:-)

संजय बेंगाणी said...

:)

mamta said...

कम से कम अब तो लोग सुधर जायेंगे। :)

वैसे आपका नाम ही काफ़ी है।

डॉ .अनुराग said...

"कोल्लेक्शन अच्छा है....जरुरत पड़ी तो टीप लेंगे

रवि रतलामी said...

आल आई कैन से, यू आर रियली बस्टिंग घोस्ट्स... :)

दोहे तो वाकई मंत्र की तरह हैं. साध्य हो जाए तो क्या कहना...

बालकिशन said...

हा हा हा.
:) :) :)

Pankaj Oudhia said...

इसका पाठ करते समय यदि बेशरम, गाजर घास और लेंटाना का धुँआ करे तो ज्यादा असरकारक होगा। :)

रंजू भाटिया said...

यह अदा भी खूब है :) अरुण जी का आईडिया और पंकज जी की सलाह भी साथ बोनस में मिल गयी :)

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

i di use "Monkee & Naughty " some times . :)but "shoe maker " is deffinately an original !!

Arvind Mishra said...

अरे वाह ,गाली भी इतनी काव्यात्मक और सृजनात्मकता भरी हो सकती है -

Anonymous said...

bada dilchasp blog hai...:)

Dr Prabhat Tandon said...

हा हा हा हा पेट मे बल पड गये :)

अनूप शुक्ल said...

बड़ी शालीन गालियां हैं। मजेदार प्रयोग!

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