Wednesday, September 10, 2008

अनुराग अन्वेषी जी का बेसुरा(ग) अन्वेषण

अपडेट: १० सितम्बर २००८, ०१:१५ दोपहर बाद

तेजी से बदलते घटनाक्रम में दो नयी घटनाएँ जुड़ गयी हैं. पहली तो ये कि कुछ नाटकीय टिप्पणियों के माध्यम से अनुराग अन्वेषी जी ने अपने दिमागी संतुलन के खो जाने की ओर इशारा किया है. इन्होने कहा है कि घोस्ट बस्टर के नाम से दरअसल श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी लिख रहे हैं. नीचे इनकी टिप्पणियां देखिये और इनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना कीजिये. कुछ ऐसी ही टिप्पणी ये रख्शंदा जी के ब्लॉग पर भी लिख आए हैं.

दूसरी बात यही है कि रख्शंदा जी के ब्लॉग पर अनाम टिप्पणियां (जिनका जिक्र पिछले अपडेट में किया गया है) देने वाले यही अनुराग अन्वेषी जी हैं, इसका पर्दाफाश हो गया है. अपनी नयी टिप्पणी में कोई भी तर्क और मेरे किसी भी सवाल का जवाब देने में ये पूरी तरह विफल रहे हैं. पर इसके बावजूद इनकी भाषा देखिये और प्रिंट मीडिया के गिरते स्तर पर एक बार फ़िर अफ़सोस कीजिये. वहां भी ये ज्ञानदत्त जी की ओर साफ़ इशारा कर रहे हैं.

इनकी तर्क क्षमता देखिये. इन्होने फ़रमाया कि अमर उजाला में २००७ में भड़ास पर कई लेख छपे थे. जब इन लेखों के लिंक मांगे तो क्या कह रहे हैं:
"इन्हें इतना टाइम हैं तो भड़ास पर जा के ढुंढ लें जानकारी की कब कब छपी है नहिं तो अपने दोस्त यशवंत जी से पूछ लें"
जब आप किसी बात की जानकारी दे रहे हैं तो सबूत देना तो आपकी जिम्मेदारी बनती है अनुराग जी, न कि ये पाठक का काम हुआ कि वो लिंक ढूंढता बैठे. चलिए फ़िर भी मैंने भड़ास को अच्छी तरह सर्च किया और मुझे ऐसी कोई भी पोस्ट २००७ की पोस्ट्स में नहीं मिली. अगर कोई ढूंढ कर बता सके तो मैं आभारी रहूँगा.

अब मैं पूछता हूँ. जब मैंने रख्शंदा की आईडी पर शंका जताई (बाकायदा कारण बताते हुए) तो मुझे इतना जलील किया गया. (डॉ. अमर कुमार जी और दिनेशराय द्विवेदी जी की टिप्पणियां देखी जा सकती हैं). आज अनुराग अन्वेषी, ज्ञानदत्त जी जैसे वरिष्ठ और सम्माननीय ब्लॉगर पर खुले आम बिना किसी तर्क के ये घिनौना आरोप लगा रहे हैं तो क्या इनकी भी ख़बर लेने वाला कोई है? या ब्लॉग जगत केवल धिम्मियों की बस्ती बनकर रह गया है?

मैं बिना तर्क के कोई बात नहीं करता. तो अंत में इस बात का भी सबूत पेश कर दूँ कि रख्शंदा जी के अनाम शुभचिंतक टिप्पणीकार अनुराग अन्वेषी जी ही हैं. जरा मेरे ब्लॉग पर अनुराग जी की इस टिप्पणी को देखें, और रख्शंदा जी के ब्लॉग पर इस अनाम टिप्पणी को. एक ही भाषा, एक ही संगीन आरोप और टिप्पणी पोस्ट करने का समय. ११:३४ AM IST वहां और ११:३५ AM IST यहाँ.

है कोई दिमाग से सोचने वाला?

अपडेट: १० सितम्बर २००८, १०:३० प्रातः

एक और काबिले गौर घटनाक्रम कल से घट रहा है. कोई जनाब बार-बार रक्षंदा के ब्लौग पर कमेंट्स में उन्हें ज्यादा जवाब न देने की नसीहत दे रहे हैं. ये कहकर कि आपसे कोई स्पष्टीकरण नहीं माँगा जा रहा है, बस चुप रहिये. ये बहुत समझदारी की सलाह है. क्योंकि जितना ज्यादा अपने बारे में सफाई दी जायेगी, शक की वजहें उतनी ही ज्यादा बढ़ती जायेंगी. अनजाने में कोई न कोई संदेहास्पद बात आपसे निकल जाने का डर बना रहता है.

कमाल की बात तो ये है कि इस संकट की घड़ी में एक (घोषित रूप में) महिला का साथ देने का पुनीत कर्तव्य निभाने वाले ये सज्जन अपनी ख़ुद की पहचान छुपाकर अनाम कमेन्ट कर रहे हैं. भाई हमारे जैसे दुष्टों का तो समझ में आता है, पर आपके जैसे शरीफ लोग भला क्यों अपने नाम से सामने आकर बात नहीं करते? क्या घोटाला है? इस पूरी कॉन्सपिरेसी में कहीं आप भी तो शामिल नहीं?

एक और मूर्खतापूर्ण तर्क से इन्होंने ब्लॉग जगत को बरगलाने की चेष्टा की है. जब रख्शंदा ने ख़ुद साफ़-साफ़ कहा है कि अमर उजाला के रविवार के परिशिष्ट में पढ़कर उन्होंने भड़ास के बारे में जाना, (रविवारीय परिशिष्ट ०२ मार्च २००८ का है) तो फ़िर पहले छपे किसी और लेख का हवाला क्यों दिया जा रहा है? लोगों को कनफ्यूस करने के लिए ही ना. और ये किस लेख की बात की रही है? यह कब छपा था? जरा विस्तार से बताइए. कोई लिंक विंक दीजिये. अगर भड़ास के बारे में अमर उजाला में इतने लेख छपते रहे तो जरूर भड़ास पर भी इसकी चर्चा जोर शोर से अवश्य हुई होगी. जरा उसका लिंक भड़ास के ही ब्लॉग से दे दीजिये जैसे मैंने दिया है.

और चलिए आपकी इस बात पर एक बार यकीन कर भी लिया जाए कि नवम्बर २००७ में कोई लेख छपा भी था तो जनाब नवम्बर तो अक्टूबर के बाद ही आता है ना. रख्शंदा की आईडी तो अक्टूबर २००७ की है. अगर अक्टूबर २००७ या उससे पहले के भड़ास के बारे में अमर उजाला के लेख की कोई लिंक हो तो बताइए. हम भी जानें क्या लिखा था उस लेख में जो रख्शंदा जी भड़ास की ओर आकर्षित हुईं. जानकारी लेकर आइये साहब. ब्लॉग जगत इन्तजार में है. और अपने नाम के साथ आयेंगे तो और भी बेहतर होगा.

अनुराग जी, पिछली पोस्ट पर आपकी टिप्पणी का शुक्रिया. सचमुच बड़ा मजेदार रहा आपका कमेन्ट पढ़ना. ये देखना भी अच्छा लगा कि चलिए किसी ने तो कोरी भावनाओं में ना बहकर दिमाग से काम लेने की कोशिश की. लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि कुल मिलाकर आपके ब्लॉगिंग सम्बंधित तकनीकी ज्ञान ने बहुत प्रभावित नहीं किया.

आप लिखते हैं:
"रख्शंदाजी के प्रफाइल को मैं झांकने गया। वहां मेंशन कि यह ब्लॉग अक्टूबर 2007 में क्रिएट किया गया है। गौर करें कि क्रिएशन का यह समय है ब्लॉगर वहां फीड नहीं करता, बल्कि जब आप ब्लॉग क्रिएट करते हैं तो यह सूचना खुद-ब-खुद वहां आ जाती है। यह अलग बात है कि अक्टूबर में क्रिएट करने के बाद रख्शंदाजी की पहली पोस्ट 7 मार्च 2008 को आई। यह भी देखना रोचक होगा कि इनकी शुरुआती पोस्ट पर टिप्पणियां या तो नहीं है या उनकी संख्या बेहद कम हैं."
बड़ा समय और शक्ति खर्च किए आपने इस अन्वेषण में. लेकिन आपके इस समूचे वक्तव्य से आख़िर निष्कर्ष क्या निकलता है? ये आईडी अक्टूबर २००७ में बनाई गई पर रक्षंदा नाम से इसके इस्तेमाल की जरूरत मार्च २००८ में पडी. बस इतनी बात. इससे क्या साबित होता है? आप को तो पता ही होगा कि आईडी का नाम कभी भी बदला जा सकता है. यह पूरी तरह सम्भव है कि अक्टूबर २००७ मैं इस आईडी को किसी और नाम से बनाया गया हो और मार्च २००८ में इस नाम से बदल दिया गया हो. (मैं सिर्फ़ संभावनाओं की बात कर रहा हूँ, यह नहीं कह रहा कि ऐसा वास्तव में हुआ ही होगा) लेकिन आपका तर्क तो औंधे मुंह गिरता ही है.

अन्वेषी जी, अब जरा रक्षंदा आईडी से आए आज के इस कमेन्ट का भी (खुले दिमाग से) कुछ विश्लेषण कीजिये जिसमें रख्शंदा जी अपनी ब्लॉग यात्रा के प्रारम्भ और "भड़ास" से अपने जुड़ाव की जानकारी दे रही हैं.
".एक बार अख़बार में...हाँ, वो अमर उजाला का रविवार का पन्ना था जिस में मैंने ब्लॉग के बारे में पढ़ा, बस एक ब्लॉग देखा नाम था भड़ास...मैंने देखा इसके बहुत सारे सदस्य हैं,,,मेरी बहन ने कहा क्यों न तुम भी इसकी मेंबर बनकर ब्लोगेर बन जाओ, बस मजाक मजाक में उस ब्लॉग के यशवंत जी को मेल किया और दूसरे दिन ही मेंबर बन गई, अपना ब्लॉग तो बस यूंही बना लिया, जो बहन ने नाम सजेस्ट किया, रख दिया..."
ये घोषणा कर रही हैं कि ब्लॉग जगत की जानकारी इन्हें अमर उजाला के रविवार के अंक से मिली जिसमें भड़ास के बारे में छपा था. उसी से इन्हें अपना ब्लॉग बनाने की भी प्रेरणा मिली. इससे पहले ये ब्लॉग जगत से अनजान थीं. क्या आप जानते हैं कि अमर उजाला की संडे मेग्जिन (संडे आनंद) में ये भड़ास से सम्बंधित लेख कब छपा था? वो तारीख थी ०२ मार्च, २००८. भड़ास पर यशवंत जी की ये पोस्ट देखिये. अब आप जरा मुझे बताइए कि जिस शख्स को ०२ मार्च, २००८ तक ब्लॉग दुनिया की जानकारी ही नहीं थी वह अक्टूबर २००७ में अपना ब्लॉग कैसे बनाकर बैठा था? जरा इसका भी अन्वेषण कीजिये और हम सभी को बताइए.

इस तरह की ढेरों कांट्राडिकटरी बातें क्या इन्हें शक के घेरे में नहीं लातीं? ऐसे में अगर मैंने अपना शक जाहिर किया तो क्या ग़लत किया?

इसके आगे आप मेरे बारे में लिख रहे हैं:
"भूतजी का ब्लॉग '2008 में क्रिएट हुआ है। ध्यान रहे कि यह वही वक्त है जब मोहल्ला और भड़ास अपनी-अपनी पोल खोल रहे थे। यह अलग बात है कि भूतजी की पहली पोस्ट मजदूर दिवस के दिन आई। साथ ही 35 कमेंट भी मिले। यानी, एक स्ट्रैटजी के तहत यह जनाब दूसरों के ब्लॉग पर टिपियाते रहे और पहली पोस्ट में ही चर्चित भी हुए।"
अब आप क्या कहना चाह रहे हैं? क्या आप मुझे भी भड़ास या मोहल्ला से जोड़ कर देख रहे हैं? बड़ा सम्मान बख्शा आपने मुझे, मैं कृतार्थ हुआ. लेकिन अनुराग जी मैं आपको बता दूँ कि मैं मूल रूप से कम्युनिटी ब्लॉग के विचार के ही खिलाफ हूँ. गिरोह्बद्द होकर काम करना और प्रेशर ग्रुप क्रिएट करना सामजिक जीवन की बुराइयाँ हैं और इनसे ब्लॉग जगत को दूर ही रखा जाना चाहिए. आप देख सकते हैं कि अपने ब्लॉग पर भी मैंने किसी कम्युनिटी ब्लॉग का लिंक नहीं लगाया है, सिवाय "चोखेर बाली" के.

और जैसा कि आप देख ही आए हैं मेरी ये आईडी जनवरी २००८ की बनी है, यानी जब मुझे हिन्दी ब्लॉग्स की जानकारी मिली उससे दो महीने पहले की. पहले दिन से ही ये आईडी इसी नाम से है. आप चाहें तो मैं आपको इस आईडी से एक अंगरेजी ब्लॉग पर किए गए कुछ कमेंट्स का लिंक बता सकता हूँ जो जनवरी २००८ में किए गए थे. हिन्दी के ब्लॉग्स तो काफी बाद फरवरी अंत में जानकारी में आए.

आपके अनुसार मैंने एक स्ट्रेटेजी के तहत और लोगों के ब्लॉग्स पर कमेन्ट किए और अपनी पहली ही पोस्ट में उसका प्रतिफल ३५ कमेंट्स के रूप में पाया. मजेदार बात रही ये भी. अनुराग जी, इन पैंतीस में से आधे से ज्यादा लोग (कहिये तो नाम गिनाऊँ) ऐसे थे जिनके ब्लॉग पर मैंने अपनी पहली पोस्ट लिखने से पहले कभी कोई कमेन्ट किया ही नहीं था. बाकी में से अधिकतर के साथ तो इससे भी बुरा सुलूक किया था और बिना किसी लाग लपेट के अच्छी बुरी कैसी भी टिप्पणियां छोड़ता रहा था. अगर आप मेरी उस दौरान की टिप्पणियां देखें तो पायेंगे कि अधिकांश का स्वर आलोचनात्मक ही था ना कि लल्लो-चप्पो वाला, वाह जी क्या बात है टाइप. फ़िर भी लोगों ने मुझपर अपना स्नेह लुटाया तो वो मेरा सौभाग्य है. शायद ऐसा कमेंट्स की ईमानदारी की वजह से ही रहा होगा.

अब चलिए एक सेकंड को आपका आरोप सत्य मान भी लें कि मैंने ऐसा लोकप्रियता कमाने के लिए किया. (काश, मुझमें सचमुच इतनी बुद्धि होती) तो ये बताइए कि इस भारी कमाई को मैंने किस तरह भुनाया? जब मुझे लोग इतना प्यार दे रहे थे तो मुझे तो हवा में उड़ते हुए रोज एक पोस्ट पेल देनी चाहिए थी. आख़िर आपके ब्लॉग पर ट्रैफिक तो तभी आएगा जब आप नियमित लिखेंगे. १ मई से लेकर ३१ अगस्त तक चार महीनों में कुल नौ पोस्ट मैंने लिखीं. अब आप मुझे समझाइए कि कौन सी स्ट्रेटेजी लेकर मैंने जनवरी में ब्लॉग बनाया और जबकि सबकुछ सोचे समझे अंदाज में आगे बढ़ रहा था उसके बावजूद आठ महीने में केवल नौ पोस्ट लिखीं?

कुल मिलाकर आपकी बात (हास्यास्पद नहीं कहूँगा) हास्यप्रद लगी. मुझे पढ़कर बड़ा मजा आया. कभी आप भी दुबारा इसे पढ़कर देखिये, शायद आप ख़ुद भी मुस्कुरा उठेंगे.
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चलिए, काफी हुआ. अनुराग अन्वेषी जी का बहुत बहुत शुक्रिया जो उन्होंने मुझे ख़ुद अपने बारे में इतनी बकवास करने के लिए उकसाया. मुझे अंदाजा नहीं था कि अपनी हांकने में इतना भी मजा आ सकता है. सचमुच बड़ा आनंद आया.

18 comments:

अनुनाद सिंह said...

सत्यमेव जयते !

विजयी भव वत्स!!

( किसी ने ठीक ही कहा है, "सच तो कोई भी बोल सकता है, लेकिन झूट बोलने के लिये बहुत तेज स्मरण-शक्ति चाहिये।" )

अनुराग अन्वेषी said...

अरे मेरे प्यारे भूत दा। बहुत तिलमिला गए आप तो। मेरे राग को बेसुरा और बेसुराग ही बना डाला। तो प्यारे भूत दा, मैं सुरागों की बात तो करता ही नहीं, सुराग वह तलाशें जिन्हें सूराख नजर नहीं आती। राग यह पसंद नहीं तो मैं रेलगाड़ी की छुक-छुक तो सुना नहीं सकता हूं। जिसकी शायद आपको आदत सी पड़ गई है। घाट घाट का पानी आपने पीया है या नहीं, यह तो नहीं पता पर लगता है जैसे इलाहाबाद के घाट का पानी जरूर पीया है। (इसका भी कोई सबूत मेरे पास नहीं है, इसलिए अब सबूत मत मांगने लगना)
और अंत में मुझे खूब पता है कि घोस्ट बस्टर वर्चस्व की लड़ाई वाले दौर की पैदाइश नहीं है। इसीलिए 'ज्ञान''देनेवालों' से एक निवेदन,मेरे लिखे से यह समझ लें कि पता होते हुए भी घोस्ट का आवरण उतारने की मुझे जरूरत नहीं। जो आवरणों में रहना चाहता है मुझे उसे सामने लाकर क्या हासिल होना है।

अनुराग अन्वेषी said...

और भूत दा, दुमछल्ला तो छूट ही गया। वह भी लीजिए, प्रगति तो आपकी देख रहा हूं इसलिए कहता हूं लेमनचूस नहीं, ले-मन-चूस।

Gyan Dutt Pandey said...

यह विषय तो तनता ही जा रहा है। कितनी इलास्टिसिटी है मित्र प्रेत-विनाशक जी!

Shiv said...

आपने बहस छेड़ने की कसम ली थी. कहाँ है वह बहस? जो कुछ भी आप लिख रहे हैं, उसे ही बहस मान लिया जाय क्या? भाई, आपने अपनी उर्जा तो कहीं और लगा दी. देखकर लग रहा है जैसे वो वैज्ञानिक ग़लत था जिसने कहा था; "उर्जा कभी नष्ट नहीं होती."

हाँ, ये भी दिखाई दे रहा है कि कुछ लोग यह मान कर चल रहे हैं कि स्टालिन की बुद्धि उसकी मूंछों में थी. ऐसे में सोचिये क्या होगा? आपके तर्क मूंछों में जाकर फंस जायेंगे. साँस लेने के लिए हवा नहीं मिलेगी. आगे क्या होगा, आप ख़ुद ही समझ लीजिये.

और आप ख़ुद भी छद्मनाम से लिखते हैं. अपने बारे में भी सोचिये कभी. चार महीने में नौ पोस्ट लिखी आपने. उनमें से चार पोस्ट की वजह से विवाद खडा कर लिया. अनुराग अन्वेषी जी को ही देखिये. उन्हें देखकर ये लगता है कि आपके ब्लॉग पर जो भी कमेन्ट करेगा वे उसे जीने नहीं देंगे. अगर वे किसी को सपोर्ट करें तो अच्छा. बाकी के लोग ख़राब हैं. उनका कमेन्ट ही देखिये. आपकी पोस्ट की वजह वे ज्ञानदत्त पाण्डेय को मानते हैं.

Rachna Singh said...

please tell me what will happen if a person makes a email id on gmail today but does not make a blog today . the blog comes up after one month then the id making date must be different then blog making date . its not necessary to make a blog immediately as soon as you make a id . so its quiet possible that rakshandas id was made much before her/his blog . also its not necessary to have a gmail id to make a blog you can use any email id and make a blog by simply loging in with that id , its a very simple process . inthat case what happens the email id is not of google so your blog date and id date will be same
. and why should you be so much bothered whether rakshanda is a man or woman its the bloggers perrogative to show what ever sex they want to show . who knows whether you are man or woman ??? its again you who is saying so and there was no need to give your physical appreance statics still you want to , it makes no difference .
now on the style of writing , its your thinking that woman "should be " writing like this . even before ghost buster took birth on blogging , neelima on vaad samvaad worte very strongly on this when a senior blogger comment that it looks like her husband is writig for her.
i am not sure why you want to prove rakshanda is man or she that no she is woman ??
google is least bothered with the gender /sex we were born with . and as regds all this hue and cry of bhadaas and her membership on bhadaas if you try to open a post wrteen by sameer lal during the time when there was a hue and cry between bhadaas and chokerbali and manisha pandey you will find rakhsnads comment very clearly saying that how antgonised she is .
i have never met her , she is not even part of our grop blog yet as a blogger i think he or she is entitlede to her /his privacy

Rachna Singh said...

furthur to last comment in case you are unable to find the links do let me know i will do it for you , time permitting . and its a request that everyone should try to make on new id today and make a blog from this id after 0 days and see the truth . i may be wrong !!!!!!!!

Anonymous said...

aur ghost buster jii dhamaki daene mae to aap bhi kuch kam nahin haen
http://bakalamkhud.blogspot.com/2008/04/blog-post.html
http://diaryofanindian.blogspot.com/2008/03/blog-post_26.html
jarur daekhaen shaayad aap ko apney hee kahey kaments mae wo dikhae jo aap aaj dr amar , aur dr dwide mae daekh rahey haen . samay saamy kaa pher haen .

L.Goswami said...

किसी की पहचान तो वह ही साबित कर सकता है बाकि मुझे जो कहना था मैंने कह दिया..आगे देखतें हैं.

L.Goswami said...

घोस्ट जी विवाद कुछ और था और अब इसकी दिशा मुड़ती सी लगती है ..कहाँ आप इजरायल मुद्दे पर लिख रहे थे कहाँ यह नारी बनाम पुरूष का झगडा.अजीब बातें हैं यहाँ की भी..वापस मुद्दे पर आइये बंधू इस खींचतान से कुछ नही हासिल होने वाला..

अनुनाद सिंह said...

रचना जी,
आप बहस की तीव्रता को कम करने या तर्क का घालमेल करने के इरादे से लिख रही प्रतीत हो रही हैं।

यहाँ यह बहुत महत्वपूर्ण है कि वह स्त्री है या पुरुष। जब कोई पुरुष चिल्लाता है कि "फ़लां मेरी ... लूटने की कोशिश कर रही है, बचाओ, बचाओ !" तो किसी के कान पर जूं नहीं रेंगती। लेकिन इसके उल्टा हो तो? कहने की जरूरत नहीं है।

दूसरी बात यह कि वह भारतीयों के इसी मनोविज्ञान को हथियार की तरह प्रयोग करते हुए दिख रहा/रही है। (क्या मुझे स्त्री होने का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा?)

आप मछली मारने जांय और कांटे में "चारा" न लगायें, उधर से कोई मछली नहीं भटकेगी। लेकिन चारा लगाते ही...
यही दृष्टान्त चिट्ठाजगत में में आकर्षक फोटो लगाने और अति आकर्षक ब्लाग-नाम रखने पर भी क्यों लागू नहीं हो सकता ?


(रचना जी, आप अंग्रेजी में ज्यादा ही गलतियाँ करती हैं; हिन्दी में लिखिये ना!!)

अनुराग अन्वेषी said...

बधाई हो भूत दा,
मैंने किसी का कोई नाम नहीं लिया। पर आपके यहां जिनका नाम मेरे हवाले से उछाला जा रहा है, मेरी प्रतिक्रिया के बाद उन्हीं की प्रतिक्रिया है आपके इस ब्लॉग पर। उन्हें तो इसका अहसास ही नहीं हुआ, पर आपको पता नहीं कैसे उनका नाम सूझ गया?
वैसे आपको अपनी पहली पोस्ट तो जरूर याद होगी। न हो तो उसका अंश मैं यहां दे दूं 'एक दिन 'दैनिक भास्कर' में हिन्दी ब्लॉग्स पर लेख पढ़ा. पढ़ कर भूल भी गए पर थोडी सी उत्सुकता तो बढ़ी. दो नाम याद रहे जो उसमें आए थे, शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय. तीन-चार दिन बाद थोडी फुरसत के समय इन नामों को गूगल पर सर्च करने बैठे और एक पूरी नयी दुनिया नजर आयी. थोड़ा सा प्रयास करने के बाद हिन्दी के सारे फॉण्ट लोड कर लिए और फिर फायरफॉक्स और ओपरा में भी हिन्दी ब्लॉग्स ठीक से नजर आने लगे.'
तो मेरे प्यारे भूत दा, आपको खुश होना चाहिए कि आपने जिनका आभार माना वह अब आपके पक्ष में खड़े हैं।
वैसे आपको जहां जो साबित करना हो, कर दो। आप मुझे भूत कहोगे तो मैं भूत नहीं हो जाऊंगा, ठीक वैसे ही कि मैं आपको भविष्य कहूं तो भी आप भविष्य नहीं हो सकते।
जारी रखें आप।
मजे के लिए एक सवाल पूछ रहा हूं सच बताना. आप भूत हो या भूतनी?
मैं तो पाठ कर रहा हूं
भूत पिशाच निकट नहीं आवै...

Rachna Singh said...

रचना जी,
आप बहस की तीव्रता को कम करने या तर्क का घालमेल करने के इरादे से लिख रही प्रतीत हो रही हैं।
i am only giving my point of view
if you feel its out of context then its ok

Shiv said...

अनुराग अन्वेषी जी,

आप तो पत्रकार हैं. आप अगर इस तरह कमेन्ट को इंटरप्रेट करेंगे तो कैसे चलेगा? मैंने घोस्टबस्टर का पक्ष लिया है या नहीं, ये तो और लोग बताएँगे. आप की समस्या उनके साथ है. आप अपनी और उनकी लड़ाई में दूसरों को क्यों खींच रहे हैं? और, यहाँ दूसरों से मेरा मतलब ज्ञानदत्त जी और मेरे नाम से है.

अखबार में ये दो नाम पढ़कर उन्होंने हमारा आभार माना, ये बात आपने कैसे समझ ली, मुझे पता नहीं. उनकी पोस्ट से जो भी पंक्तियाँ आप लेकर आए हैं, उनमें ऐसा कुछ नहीं लिखा हुआ है. मैं उनकी इस पोस्ट पर टिप्पणी नहीं करना चाहता था लेकिन आपने अपनी टिप्पणी में जिस तरह से ज्ञानदत्त जी का नाम घसीटा है, मुझे उसके चलते टिप्पणी करनी पड़ी.

घोस्टबस्टर रक्षंदा जी को क्या कहते हैं, इसपर न जाने कितनी पोस्ट और कमेन्ट लिखे जायेंगे. लेकिन आपको या किसी और को कोई हक़ नहीं कि वो इस विवाद के बहाने दूसरों के ऊपर इस तरह का गैरजिम्मेदाराना आरोप लगायें. आप घोस्टबस्टर के साथ अपनी लड़ाई लड़िये न, किसने मना किया है? लेकिन ये कहाँ तक उचित है कि बिना मतलब किसी और ब्लॉगर को आप अपने झगड़े में घसीटें?

सागर नाहर said...

ना सूत ना कपास और जुलाहों में लट्ठम लट्ठा.. लगे रहिये।

Ghost Buster said...

शिव जी: आपने लिखा है -

१) "आपने बहस छेड़ने की कसम ली थी. कहाँ है वह बहस? जो कुछ भी आप लिख रहे हैं, उसे ही बहस मान लिया जाय क्या?"

मैं इसे क्या मानता हूँ वो आप इस पोस्ट के टैग्स देखकर अंदाजा लगा सकते हैं. लेकिन मुझे इसमें जानबूझकर उलझाया जा रहा है तो फ़िर पीछे हटना जरा मुश्किल है.

२) "और आप ख़ुद भी छद्मनाम से लिखते हैं. अपने बारे में भी सोचिये कभी. चार महीने में नौ पोस्ट लिखी आपने. उनमें से चार पोस्ट की वजह से विवाद खडा कर लिया."

शिव जी ब्लॉग जगत की निर्मल स्वच्छ धारा के नीचे (नजरों से ओझल) एक गन्दा नाला सदा बहता रहता है. इस गन्दगी को इग्नोर करके आप इसे और पनपने का अवसर देते हैं. कभी ना कभी तो सफाई करनी ही पड़ेगी, कुछ देर के लिए इस गन्दगी से तकलीफ हो सकती है, मगर यह अपरिहार्य है.

आप ही बताइए, अगर ये मुद्दा तूल नहीं पकड़ता तो अनुराग जी के विचार आपको कभी पता चलते? बहस के बायप्रोडक्ट्स भी काफी कुछ दे देते हैं.

और जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं पहचान छुपाकर लिखता हूँ. इसमें और "फेक आईडेनटिटी" में क्या फर्क होता है वो तो आप अच्छी तरह समझते ही होंगे. फ़िर भी एक उदहारण से स्पष्ट करना चाहूँगा.

मान लीजिये कोई व्यक्ति आपसे व्यक्तिगत रूप से मुलाकात करता है, मगर इस शर्त के साथ कि बातचीत के दौरान आप उसके चेहरे को नहीं देख पायेंगे. आप तैयार हो जाते हैं क्योंकि आपको उस व्यक्ति से मिलने की इच्छा है और उसकी बातें आपको अरुचिकर भी नहीं लगतीं.

दूसरी ओर एक अन्य व्यक्ति है. यह जयपुर में रहता है और सरकारी मुलाजिम है. लेकिन आपसे मुलाकात में अपना परिचय देता है कि वह दिल्ली का निवासी है और उसका रेडीमेड वस्त्रों का बड़ा कारोबार है. इसी आधार पर वह आपसे मुलाकात और चर्चा करता है.

तो बताइए इन दोनों में कोई फर्क है या नहीं? दोनों में से कौन ज्यादा बड़ा फ्रॉड है? बस यही अन्तर है.

Ghost Buster said...

रचना जी: बहुत सारे सवाल उछाल दिए हैं आपने. इनका जवाब देने के लिए तो एक अलग से पोस्ट दरकार होगी. वो मैं करता हूँ, तब तक के लिए जान लीजिये कि जीमेल आईडी के बारे में जो आप कह रही हैं, वह सम्भव नहीं है. मैं अगली पोस्ट में विस्तार से बताता हूँ.

लवली जी: आपको मैं एक प्रबुद्ध ब्लॉगर समझता हूँ. ब्लॉग जगत की कई ऐसी बहसों में आपकी साहसिक उपस्थिति देखी है जहाँ आम तौर पर लोग शामिल होने से कतराते हैं, खास तौर पर महिलाएं तो इक्का-दुक्का ही नजर आती हैं.

लेकिन इस कमेन्ट को देखकर मुझे दुःख हुआ. आप इसे नारी बनाम पुरूष का मुद्दा बता रही हैं. ये सरासर ग़लत है. ये इंटरनेट की आभासी दुनिया में फ्रॉड का मुद्दा है. मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाने की खातिर इसे स्त्री-पुरूष का रंग दिया जा रहा है, आप ध्यान दें तो इस चाल को आसानी से समझ सकती हैं.

और जहां तक इस्राइल का सवाल है तो मुख्य बात तो उसी पर होनी है. अभी जो चल रहा है, उसे तो आप मेन प्रोग्राम कोड की एक सबरूटीन समझ लें. इस शॉर्ट सप्लीमेंट्री कोड के एक्सीक्युट होने के बाद कंट्रोल एक बार फ़िर मेन कोड को सौंप दिया जायेगा.

अनुराग अन्वेषी जी: चलिए, आपको कुछ सद्बुद्धि आयी और आपने ज्ञान जी को इस ग़लत आरोप से बरी करने और अपनी कही बात से मुकरने का प्रयास किया.. कल तक आप जो कुछ कह रहे थे, आज उसी को झुठला रहे हैं, लेकिन ब्लॉग जगत इतना भी मूर्ख नहीं है कि आप की बात को समझ ना सके. यहाँ समाचार-पत्रों जैसी औपचारिकता का आडम्बर अभी कुछ कम है.

जिस तरह से आपके अनामी कमेंट्स का राज ब्लॉग जगत के सामने मय सबूत खोल कर रख दिया गया है, आपका भयभीत होकर "भूत पिशाच निकट नहीं आवें" का पाठ करना बिल्कुल उचित है, करते रहिये.

L.Goswami said...

घोस्ट भाई आपको दुःख पहुँचाना मेरा आशय नही था ..पर एक बार सोंचिये अवश्य दुःख बड़ी अजीब चीज है किसी को भी हो सकता है..मैंने उससे करीब दसियों बार बात की है, इसलिए कह रही हूँ मुद्दे पर लौटा जाए तो ज्यादा अच्छा होगा.इससे क्या फर्क पड़ता है वह नारी है या पुरूष (यहाँ गौरतलब हो की मैंने आजतक कोई वाद प्रायोजित नही किया है) आप लिखिए जहाँ लिख रहे थे अगर आपके तर्क में दम होगा तो लोग आपको जरुर पढेंगे ..यही बात वहां भी लागु होती है ..मेरा कहना बस यही था

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