कोसी की बाढ़ की विनाशलीला देखी होगी आपने. हेलीकाप्टर से राहत सामग्री गिराई गयी. लोग दो-दो, तीन-तीन दिन से भूखे, आगे फ़िर कब सरकारी मदद आए, कुछ पता नहीं. ऐसे में जिसके हाथ जितना लग सके, झपट लो. पड़ोसी का ख्याल करोगे तो अपने घर-परिवार को कैसे संभालोगे? सब जायज है. सही-ग़लत के फेर में पडोगे, तो भूखे मरोगे. जिनमें ज्यादा दम थी, जिन्होंने आगे जगह बना ली, ज्यादा रोटी-पानी बटोर ले गए.
हजार साल की गुलामी के बाद मुल्क आजाद हुआ. संसाधनों पर अपना कब्जा हुआ. जिन्हें पहले मौका मिला, जिसके बाजुओं में दम था या जिसकी बुद्धि काम कर गयी, उसने जितना बना, हथिया लिया. आगे भी घर-परिवार की दुकानदारी चलती रहे, इसके लिए कोड ऑफ़ कंडक्ट तैयार हो गया. असहज करने वाले प्रश्न न पूछे जाएँ. तर्क-वितर्क से परहेज किया जाए. मूर्खतापूर्ण भावनाओं में लोगों को उलझाये रखा जाए भले ही उनकी आंखों पर पट्टी बांधनी पड़े. और लोग भी कौन? पीढियों से गुलाम, अपनी अस्मिता कब की गुमा चुके रीढविहीन धिम्मी. कोई मुश्किल काम नहीं इन मूर्खों को बरगलाना. बस दुकानदारी चल निकली और चलती रही, आज भी जोर-शोर से चल रही है.
ऐसे में अगर कोई तर्क की बात करे, आपकी असलियत उजागर करे, तो ये आपकी जमी-जमाई दुकान के लिए बड़ा खतरनाक साबित हो सकता है. अगर लोग दिमाग से सोचने लगेंगे, तो फ़िर आपकी क्या गत होगी? तो लोगों को बस अपने झूठ के मकड़जाल में उलझाये रखो.
- 'सिमी' क्या है?
=> कुछ नहीं जी. आइये 'मदनमोहन' जी का ये अद्भुत गीत सुनते हैं.
- ये नकली करेंसी कहाँ से आ रही है? इसके पीछे कौन है और उसका क्या उद्देश्य है?
=> पाकिस्तान और हिंदुस्तान एक ही माँ की दो संतानें हैं. सीमा के दोनों और एक जैसे दिल धड़कते हैं. प्यार ही प्यार है.
- जम्मू में क्या हलचल है? इन लोगों की क्या समस्याएँ हैं जो इतना रोष दिख रहा है?
=> कश्मीर से सेना हटाकर उसे पाकिस्तान के हवाले क्यों नहीं कर दिया जाता?
- गोधरा में क्या हुआ?
=> आपने फैज़ साहब की नयी नज़्म सुनी? आज ही पौड्कास्ट पर चढ़ाई है.
- ये जगह जगह धमाके कर मासूमों के खून से होली क्यों खेली जा रही है? इसके पीछे आख़िर कौन है और उसका क्या उद्देश्य है?
=> "उनके प्रभाव में आकर कई नौजवानों ने अपने आप को खुदकूश बम बनाकर शहीद कर दिया."
अरे बस करो. कोई चुप कराओ इस नीच को. ये उल्टे सीधे प्रश्न पूछकर सारा धार्मिक सौहार्द्य बिगाड़ देगा. (और हमारी दुकानदारी भी)
13 comments:
yatha naam tatha gun.badhai aapko ghost ko bust karne ki
बहुत भावावेश में लिखा है आपने ! फोटो देखकर दिल दहल गया !
धर्म की परिभाषा
कभी कभी मन कहता हैं
की आओ सब मिल कर
एक साथ
विसर्जित कर दे
हर धर्म ग्रन्थ को
हर मूर्ति को
हर गीता , बाइबल
कुरान और गुरुग्रथ साहिब को
एक ऐसे विशाल सागर मे
जहाँ से फिर कोई
मानवता इनको बाहर
ना ला सके
किस धर्म मे लिखा हैं
की धमाके करो
मरो और मारो
और अगर लिखा हैं
तो चलो करो विसर्जित
अपने उस धर्म को
अपनी आस्था को अपने
मन मे रखो और
जीओ और जीने दो
मानवता अब शर्मसार हो रही हैं
तुम्हारी धर्म की परिभाषा से
भैया, यह फोटो हटा लेते। जी घबराता है।
व्यवस्था के प्रति आपका आक्रोश जायज है।
(पर फोटो से वाकई जी घबरा गया है)
.
हम सच को नकारने वाली कौम के बुद्धिजीवी हैं, जी !
हम तो अच्छा अच्छा देखेंगे, हर ओर हरी भरी हरियाली
हम तो अच्छा अच्छा सुनेंगे, दिल को सहलाती कर्नाटिक संगीत
हम तो कुछ भी अप्रिय न बोलेंगे, हम गाँधी के छोड़े भये बंदर हैं
आप इतना सच लिखेंगे, तो हम पढ़ेंगे भी नहीं, बुरा मत पढ़ो...
टिपियायेंगे भी नहीं, एक दो फोटो और लहाइये न, सच को देख
कुछ और लोग कम से कम घबड़ाने का कर्तव्य तो निभा लें, सही ?
डॉ अम्बर कुमार: आप कौन किसिम के जीवी हैं उस पर तो हम कुछ कहना मुनासिब नहीं समझते, पर आपकी लिखावट (और उसकी गिरावट) देखकर आपके प्रति एक बड़ी घबराहट सी घेर ले रही है.. वो इससे कि आप जैसे स्वनामधन्य टिप्पणीकार जब बिंदी मारकर इटेलिक्स में लिखते जाते हैं तो इस बात से अनजान रहते हैं कि यूँ लगातार केवल टेढ़ा-टेढ़ा लिखने से स्वभाव में किस कदर टेढापन आ जाने का खतरा पैदा हो जाता है. बल्कि सच्चाई तो ये है कि न जाने कहाँ-कहाँ टेढ़ेपन की आफत घेर सकती है. माना ऐसे विज्ञापन खूब देखने को मिलते हैं जो कैसे भी टेढ़ेपन के शर्तिया इलाज का दावा करते हैं, पर आप तो डांगधर ठहरे. खूब समझते होंगे इनकी सच्चाई को. और किसी भी किसम की टटोला-टटोली से तो आप वैसे भी घबराते हैं, तो इलाज कैसे करवा सकेंगे? एक बार इस मुसीबत ने घेर लिया तो फ़िर पारिवारिक जीवन कैसे सुख की राह पकडेगा? हमारी सलाह मानिए और सीधा-सीधा लिखिना सीखिए.
बाकी रहा सवाल और लोगों के कर्तव्य निभाने का तो आप उनकी चिंता छोडिये और जिस खूँटिया पर अपना डांगधरी का आला टांग कर ये ढोल्ची गले में सुशोभित कर धांय धांय कूट रहे हैं, उसी की बगल में रखी अलमारी में "बुद्धि कायम चूर्ण" की शीशी भी पडी लुढ़क पुढक हो रही है. जरा नियम से सुबह-शाम फान्कियाँ मारते रहिये. कोई परेशानी नहीं ना फेस करेंगे.
सादर.
Deeply saddened to see this Lady
sitting in pool of blood :-(
Who is she ?
( sorry to put my comment in English -
I'm away from my PC )
घोस्ट बस्टर जी,
अब आप के चिट्ठे पर आने का मन नहीं करता।
बात जो पढ़ रहे हैं वो नहीं है..ऐसा लगता है.
पोस्ट से कोई शिकायत नहीं है मुझे, मगर आपको नहीं लगता है क्या की आपने जवाबी कमेंट जो लिखा है वो.... आगे आप खुद ही भर लें..
द्विवेदी जी: मन क्यों नहीं करता, यदि आपने इस ओर भी थोड़ा सा संकेत कर दिया होता, तो खादिम को सुधरने में थोड़ी सुविधा होती. अगर आपका इशारा मेरी टिप्पणी की ओर है तो मेरे ख्याल से आप इसके सन्दर्भ से परिचित नहीं हैं.
ये टिप्पणी डॉकटर साब की १२ सितम्बर की पोस्ट (http://c2amar.blogspot.com/2008/09/blog-post_12.html) के जवाब में लिखी गयी है. ये हम दोनों के बीच का एक बिल्कुल व्यक्तिगत मसला है. लगता है कि आप उस पोस्ट को पढने से चूक गए थे. आपसे अनुरोध है कि उसे तुंरत पढ़ लें. डॉक साब की ये पोस्ट एक नायाब मास्टरपीस है. जरा ध्यान दीजियेगा कि इसमें मेरी वाइफ के लिए किन शब्दों का प्रयोग किया गया है. और भी बहुत कुछ है. मेरा दावा है कि उस पोस्ट को पढने के बाद आपको मेरी ये टिप्पणी बहुत ही सभ्य और शालीन प्रतीत होगी, और उचित प्रत्युत्तर भी.
समीर जी: आपको क्या लगता है बात क्या है?
पीडी भाई:द्विवेदी जी को दी सफाई में शायद आपको अपनी बात का उत्तर मिल गया होगा. मैं इस तरह की भाषा नहीं लिखता, पर लिखी है तो डॉक बाबू को ये बताने के लिए कि ना लिखता को ना लिख सकता ना समझें.
"अरे बस करो. कोई चुप कराओ इस नीच को. ये उल्टे सीधे प्रश्न पूछकर सारा धार्मिक सौहार्द्य बिगाड़ देगा."
सच है, "शांति" के नाम पर हम असली शांति भंग करने वालों को पूरी छूट दिये हुए हैं!! इस से राष्ट्रीय अखंडता प्रभावित हो रही है!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
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